संधारणीय विकास: लोगों की आवश्यकताओं के साथ विकास का संतुलन (Sustainable Development: Harmonizing Growth with People’s Needs) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

संधारणीय विकास: लोगों की आवश्यकताओं के साथ विकास का संतुलन (Sustainable Development: Harmonizing Growth with People’s Needs)

04 Oct 2025
1 min

सुर्खियों में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने भागीरथी पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में नेताला बाइपास के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दी है। इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं के कारण इस परियोजना को अस्वीकार कर दिया था।

अन्य संबंधित तथ्य:

  • यद्यपि रक्षा मंत्रालय ने इस परियोजना को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण घोषित किया है, तथापि इसके पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं।
  • हाल ही में आई धराली आकस्मिक बाढ़ और विशेषज्ञों के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि प्रस्तावित बाइपास मार्ग भूस्खलन और धँसाव की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है।
  • यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा/रणनीतिक परियोजनाओं, संधारणीय विकास और स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं के बीच संभावित टकराव को उजागर करता है।

पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) के बारे में

  • ये संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र होते हैं।
  • इन्हें केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किया जाता है।
  • ESZ दिशानिर्देशों के अनुसार गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
  • प्रतिबंधित: वाणिज्यिक खनन, प्रदूषणकारी उद्योगों की स्थापना आदि।
  • विनियमित: वृक्षों की कटाई, होटलों और रिसॉर्ट की स्थापना आदि।
  • अनुमत: स्थानीय समुदायों द्वारा की जाने वाली कृषि और बागवानी गतिविधियां, दुग्ध उत्पादन आदि।

 

संधारणीय विकास और लोगों की आवश्यकताओं के बीच टकराव क्यों होता है?

  • लोगों की प्राकृतिक संसाधनों पर आर्थिक निर्भरता:
    • आजीविका की निर्भरता: आदिवासी, पशुचारक, छोटे किसान वनों, नदियों और चारागाहों पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण: राष्ट्रीय उद्यान चारण जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाते हैं।
    • लघु उद्योग: ईंट भट्टों जैसी प्रदूषणकारी इकाइयों को बंद करने या वस्त्र उद्योग जैसे क्षेत्रों में कड़े पर्यावरणीय नियम लागू करने से दिहाड़ी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।
  • विकास और विस्थापन: विकासात्मक परियोजनाओं जैसे कि बड़े बांध, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं आदि के कारण 40% से अधिक आदिवासी जनसंख्या विस्थापन की समस्या का सामना कर रही है।
  • राष्ट्रीय हितों की रक्षा: उदाहरण के लिए, पर्यावरण मंत्रालय ने 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना के तहत महत्वपूर्ण और परमाणु खनिजों की खनन गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श से रियायत दे दी है।
    • साथ ही, वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 में प्रतिपूरक वनीकरण के लिए महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र को भी विशेष रियायतें दी गई हैं। 
  • नीति और शासन में विद्यमान कमियां:
    • टॉप-डाउन निर्णय-निर्माण प्रक्रिया: पर्यावरणीय नियम अक्सर स्थानीय भागीदारी के बिना बनाए जाते हैं, जिससे गरीब और स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं की अनदेखी होती है।
    • कमजोर सामाजिक सुरक्षा तंत्र: "संक्रमण काल" के दौरान (जैसे मौसमी आधार पर मत्स्यन गतिविधियों पर प्रतिबंध, खनन बंदी) अन्य कोई प्रत्यक्ष सहायता नहीं मिलती।
  • पर्यावरणीय समाधान महंगे होते हैं:
    • स्वच्छ तकनीक तक सीमित पहुंच: सौर पंप और इलेक्ट्रिक वाहन जैसी तकनीकों के लिए प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता होती है, जिसे गरीब परिवार वहन नहीं कर सकते।
    • ऋण बाधाएं: हरित आजीविका की ओर रूपांतरण के लिए सस्ता ऋण या सूक्ष्म वित्त सेवाएँ उपलब्ध नहीं होतीं। उदाहरण: प्लास्टिक प्रतिबंध के बाद सस्ते प्लास्टिक पैकेजिंग को त्यागकर अन्य विकल्पों को अपनाने में छोटे व्यवसायों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।

टकराव को कम करने के लिए सरकारी पहलें:

  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम (RFCTLARR), 2013: यह भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को विनियमित करता है और मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए प्रक्रिया और नियम निर्धारित करता है।
    • इस अधिनियम के तहत सामाजिक प्रभाव आकलन अनिवार्य है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अनिवार्य किया गया है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006: यह अधिनियम वन-निवासी समुदायों के ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने और उनके अधिकारों की रक्षा हेतु लागू किया गया।
  • प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम, 2016: इस अधिनियम के तहत प्राप्त कोष का कुछ हिस्सा सामुदायिक विकास के लिए उपयोग करना अनिवार्य है।
  • जिला खनिज प्रतिष्ठान (DMF), 2015: यह खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था, ताकि खनन से प्राप्त राजस्व को स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास के लिए उपयोग किया जा सके।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय और जलवायु-विशेष योजना: हिमालयी क्षेत्र (भूस्खलन-संवेदनशील अवसंरचना), तटीय क्षेत्र (मैंग्रोव बफ़र, चक्रवात आश्रय स्थल), शुष्क क्षेत्र (माइक्रो-सिंचाई, सूखा-प्रतिरोधी फसलें) के लिए विशिष्ट योजनाएं तैयार करना।
  • पर्यावरणीय न्याय प्रणाली को सशक्त बनाना: NGT (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) की प्रक्रिया को तेज करना, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की क्षमता बढ़ाना और पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को अधिक पारदर्शी बनाना।
  • सहभागी निर्णय-निर्माण: स्थानीय समुदायों को परियोजना नियोजन में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि आवश्यकताओं और संधारणीयता के बीच संतुलन बना रहे।
  • हरित आजीविका कार्यक्रम: ईको-पर्यटन, बांस आधारित आजीविका, मैंग्रोव पुनर्स्थापन और वनोपज का मूल्य संवर्धन जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना।
  • न्यायसंगत संक्रमण कोष: खदान बंदी, हरित ऊर्जा की ओर रूपांतरण या मौसमी प्रतिबंध (विशेषकर मत्स्य पालन) से प्रभावित श्रमिकों को सहायता प्रदान करने हेतु एक राष्ट्रीय कोष की स्थापना की जा सकती है।
Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features