इन नई परियोजनाओं का उद्देश्य गंगा नदी और उसके जल में रहने वाले जीवों के संरक्षण प्रयासों को बढ़ाना है।
स्वीकृत प्रमुख परियोजनाएं
- चंबल, सोन, दामोदर और टोंस नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह का आकलन करने की परियोजना:
- पर्यावरणीय प्रवाह से आशय प्राकृतिक अपवाह से है। यह वास्तव में किसी नदी में जल की पर्याप्त मात्रा और समय पर उसकी उपलब्धता बनाए रखता है।
- उत्तर प्रदेश में गंगा बेसिन में संकटग्रस्त कछुओं के संरक्षण की परियोजना:
- इस परियोजना का उद्देश्य संकटग्रस्त कछुओं की प्रजातियों का पुनर्वास और अत्यधिक संकटापन्न कछुओं की प्रजातियों को फिर से वापस लाना है।
- इस परियोजना के तहत राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में स्थानिक निगरानी और रिपोर्टिंग टूल की स्थापना की जाएगी।
- फंसी हुई (असहाय) गंगा नदी-डॉल्फिन के संरक्षण के लिए बचाव प्रणाली में सुधार:
- उद्देश्य: संकट में फंसी डॉल्फिन की सहायता के लिए डॉल्फिन एम्बुलेंस नामक विशेष बचाव वाहन का विकास और तैनात करना।
- यह परियोजना प्रशिक्षण के माध्यम से डॉल्फिन संरक्षण और सामुदायिक क्षमता निर्माण हेतु जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
गंगा डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका) के बारे में
- पर्यावास स्थल: भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र-बराक नदियों में तथा भारत, नेपाल और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना व कर्णफुली-सांगु नदियों में पाई जाती है।
- विशेषताएं:
- ये ताजे जल में पाई जाती हैं।
- ये दृष्टिहीन होती हैं और शिकार का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक ध्वनि उत्सर्जित करती हैं।
- मुख्य खतरे:
- मछली पकड़ने के उपकरणों (जैसे जाल) में उलझने से इनकी मौत हो जाती है;
- डॉल्फिन का तेल प्राप्त करने के लिए इनका अवैध शिकार किया जाता है;
- विकास परियोजनाओं के कारण इनके पर्यावास नष्ट हो रहे हैं;
- औद्योगिक अपशिष्ट, कीटनाशकों आदि की वजह से नदी जल प्रदूषित हो रहा है इत्यादि।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: एंडेंजर्ड;
- CITES: परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध;
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-1 में सूचीबद्ध।
गंगा-नदी डॉल्फिन के संरक्षण के लिए पहलें:
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