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Ethics Class Hindi

कक्षा के उद्देश्यों पर चर्चा (5:03:20 PM)

नीतिशास्त्र का आशय (5:03:44 PM):-

  • नीतिशास्त्र का आशय ऐसे सिद्धान्तों, मानकों या मूल्यों से है, जो समाज के द्वारा अधिरोपित किया गया हो एवं समाज के सदस्यों के व्यवहार, चयन और क्रियशीलता को मार्गदर्शित या नियमित करे। 
  • नीतिशास्त्र सामाजिक जीवन के संदर्भ में मानवीय आचरण का आकलन उचित या अनुचित/ शुभ और अशुभ के रूप में करता है। 
  • नीतिशास्त्र का संबंध ऐसे क्रियाशीलताओं से है, जो कि स्वैक्षिक हो। 

अभिक्षमत्ता /Aptitude(5:13:15 PM):

  • अभिक्षमत्ता का आशय किसी व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले कार्य निष्पादन हेतु अपेक्षित गुणों को सीखने की क्षमत्ता या दक्षता से है। 

सत्यनिष्ठा/Integrity (5:20:17 PM):

  • सत्यनिष्ठा का आशय यह है कि लोकसेवक का व्यवहार लोकसेवक की तरह होनी चाहिए। 
  • इसमें किसी भी प्रकार की कमी या अभाव या त्रुटि का होना सत्यनिष्ठा की कमी को दर्शाती है। 
  • सत्यनिष्ठा एक गुणात्मक अवधारणा है, अतः इसका मापन किया जाना कठिन है। 
  • भ्रष्टाचार का होना सत्यनिष्ठा की कमी का एक महत्वपूर्ण आयाम है न कि एक मात्र आयाम, परंतु व्यवहारिकता में भ्रष्टाचार का होना सत्यनिष्ठा की कमी का एक पर्याय माना जाता है। 
  • प्रशासन  में  सत्यनिष्ठा को प्रोत्साहित करने हेतु भारत सरकार के द्वारा वर्ष 1962 में संथानम समिति का गठन किया गया, परंतु इसके औपचारिक उद्देश्य को भ्रष्टाचार निवारण समिति के रूप में परिभाषित किया गया एवं इसी समिति की अनुशंसा के आधार पर कार्यकारी निर्णय के द्वारा 1964 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया, जिसे 20003 में संसद के कानून के द्वारा विधिक दर्जा दिया गया। 

कथन- भ्रष्टाचार एकमात्र समस्या न होकर एक चुनौती है। 

भ्रष्टाचार (5:40:31 PM):

  • भ्रष्टाचार का आशय लोक सेवकों के द्वारा सरकारी पद या लोक संसाधनों का दुरुपयोग अपने निजी हितों के लिए किए जाने से है। 

भ्रष्टाचार के कारण : -

  • भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव समाज पर व्यापक रूप से देखने को मिलता है, जो कि समस्या को जटिल या चुनौतीपूर्ण बनाती है। 
  • शासन प्रणाली में भ्रष्टाचार का होना बहुल एवं विविध कारकों की अंतःक्रिया का एक सम्मिलित परिणाम है, जैसे- ऐतिहासिक कारक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, वैधानिक कारक, राजनीतिक कारक एवं प्रशासनिक कारक। 

भ्रष्टाचार एक चुनौती :-

  • भ्रष्टाचार परिदृश्य 2022 के अनुसार, विश्व का कोई देश 100% भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है।  यहाँ तक कि भारत का अंक औसत अंक से भी कम है, जो कि भ्रष्टाचार को एक चुनौतीपूर्ण समस्या के रूप में दर्शाती है। 
  • इस सूचकांक के आधार पर भ्रष्टाचार के निवारण की दिशा में सरकार के द्वारा अब तक जो भी प्रयास किए गए, वे अपने आप में सुधार की मांग करती है। 
  • अधिकांश मामलों में भ्रष्टाचार का प्रयोग विधिक सेवाओं को प्राप्त करने हेतु किया जाता है, जो कि इस समस्या को अधिक जटिल एवं चुनौती पूर्ण बनाती है। 
  • शासन प्रणाली के प्रत्येक स्तरों पर भ्रष्टाचार किसी न किसी रूप में विद्यमान है, जो कि समस्या को अधिक जटिल बनाती है। 
  • भरत में भ्रष्टाचार की मूल प्रकृति लालच या लोभ पर आधारित है, अतः इसके रोकथाम की दिशा में विधिक उपाय अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। 
  • अतः भ्रष्टाचार के रोकथाम की दिशा में विधिक उपायों के साथ-साथ नैतिक मूल्यों के विकास पर भी बल दिया जाना आवश्यक है, जो कि सामाजीकरण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। 
  • डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के अनुसार, भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र की स्थापना हेतु तीन सामाजिक अभिकर्ताओं  की भूमिका का विशेष महत्व है। ये तीन अभिकर्ता हैं- माता, पिता और शिक्षक।
  • पिता का दायित्व बच्चों को अनुशासित करने से है, माता का दायित्व बेहतर पालन-पोषण से है एवं शिक्षक का दायित्व उचित मार्गदर्शन को प्रदान करने से है। 

भ्रष्टाचार के रोकथाम के उपाय (7:01:03 PM):-

सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार  के रोकथाम की दिशा में निम्नांकित उपायों को लागू करें पर विशेष बल दिया जा रहा है:-

  • भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम , 1988 और इसमें अद्यतन संशोधन वर्ष 2018 में किया गया। 
  • सूचना  का अधिकार अधिनियम, 2005 तथा संशोधन 2019 
  • आचरण संहिता(केन्द्रीय सिविल सेवा आचरण संहिता नियमावली, 1964 )
  • नागरिक घोषणा-पत्र 
  • व्हिसिल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2011 
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013: पृष्ठभूमि (7:06:59 PM):-

  • लोकपाल का गठन ओम्बड्समेन  पर आधारित है।  
  • ओम्बड्समेन  का आशय ऐसे अधिकारी से है, जिसकी नियुक्ति संसद के द्वारा प्रशासनिक या कार्यकारी एवं न्यायिक शक्तियों के दुरुपयोग के जांच-पड़ताल से है, ताकि जनता की शिकायतों का निवारण किया जा सके। 

कथन- भारत में लोकपाल का गठन ओम्बड्समेन के आधार पर किया गया है, परंतु ओम्बड्समेन का मौलिक भाव भारत के लोकपाल के संदर्भ में देखने को नहीं मिलता है। 

  • ओम्बड्समेन  केे आधार पर भारत में लोकपाल विधेयक सर्वप्रथम 1968 में प्रस्तुत किया गया, जो कि प्रथम प्रशासनिक सुधार की अनुशंसा के आधार पर गठित किया गया। 
  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग-1966-1970 
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग- 2005-2009   
  • लोकपाल विधेयक वर्ष 1968 में प्रस्तुत किया गया, परंतु लोकपाल एवं लोकायुक्तअधिनियम, 2011 को 2013 में अधिनियमित किया गया, जो कि लोकपाल के गठन की दिशा में 11 वां प्रयास था। 
  • इस अधिनियम का क्रियान्वयन 16 जनवरी, 2014 को किया गया। 
  • इस बीच कुछ राज्य सरकारों के द्वारा अपने-अपने स्तर पर लोकायुक्त का गठन किया गया। ओडिसा सरकार के द्वारा सर्वप्रथम लोकायुक्त अधिनियम को पारित किया गया था, परंतु इसे सर्वप्रथम महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित किया गया था। 
  • लोकायुक्त के कार्य की समीक्षा हेतु प्रथम लोकायुक्त सम्मेलन का आयोजन वर्ष  1986 में शिमला में किया गया था। सबसे हाल में इसका आयोजन वर्ष 2012 में नई दिल्ली में किया गया था।
  • भारत में लोकायुक्त की कार्य प्रणाली से संबंधित चार दृष्टिकोण या परिस्थितियों से देखा जा सकता है-
    • लोकायुक्त का गठन अब तक प्रत्येक राज्य में नहीं किया जा सका है।   
    • अधिकांश राज्यों में यह निष्क्रिय रूप से कार्यरत है।
    • कुछ राज्यों में लोकायुक्त सक्रिय तरीके से कार्यरत है।
    • एक या दो राज्यों में लोकायुक्त सक्रिय तरीके से कार्यरत हैं, जैसे- उदाहरण के तौर पर कर्नाटक के लोकायुक्त को एक आदर्श संस्थान की संज्ञा दी गई है। 

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