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Environment Class 02 Hindi

पूर्व की कक्षा के संबंध में संक्षिप्त चर्चा व प्रश्नोत्तर ( 09:11 AM ) |

जीवोम और पारितंत्र के बीच अंतर ( 09:18 AM ) :- 

जीवोम ( Biome )  पारितंत्र ( Ecosystem ) 
  • यह अलग-अलग जलवायु और पादपों तथा जीव - जंतुओं की प्रजातियों से युक्त भूमि का एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र है।
  • यह बर्फ, हिम, वर्षा, तापमान आदि जैसे जलवायु संबंधी कारकों से अत्यधिक प्रभावित होता है।
  • यह पारिस्थितिकीय इकाइयों की एक बड़ी श्रेणी है; इसमें कई पारितंत्र शामिल होते हैं।
  • चूंकि जीवोम या बायोम में कई प्रजातियों का संग्रह होता है, इसलिए इसमें पादपों एवं प्राणी प्रजातियों की व्यापक विविधता विद्यमान होती है।
  • जीवोम के कुछ सामान्य उदाहरणों में मरुस्थल, टुंड्रा, घास के मैदान और उष्णकटिबंधीय वर्षा वन शामिल हैं।
  • अक्षांश का जीवोम पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
  • किसी बायोम के सभी सजीव एक दूसरे के साथ परस्पर क्रिया नहीं कर सकते हैं।
  • यह किसी क्षेत्र में अजैविक और जैविक घटकों मध्य की परस्पर क्रिया है।
  • यह एक छोटा भौगोलिक क्षेत्र है।
  • यह बर्फ, हिमपात, तापमान आदि जैसे जलवायु संबंधी कारकों से अधिक प्रभावित नहीं होता है।
  • यह जैविक और अजैविक कारकों से निर्मित किसी बायोम का एक हिस्सा है।
  • चूंकि पारितंत्र का आकार छोटा होता है इसलिए बायोम की तुलना में पारितंत्र में पादप एवं प्राणी प्रजातियों की विविधता कम होती है।
  • कुछ सामान्य उदाहरणों में प्रवाल भित्तियाँ, तालाब, मेक्सिको की खाड़ी आदि शामिल हैं।
  • पारितंत्र पर अक्षांश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • पारितंत्र के सभी प्राणी और सजीव आपस में पारस्परिक क्रिया करते हैं। 

पारितंत्र के घटक ( 09:34 AM ) :- 

1. अजैविक घटक :- 

  • जलवायु संबंधी कारक :- वर्षा , प्रकाश , वायु , तापमान |
  • मृदा संबंधी कारक :- मृदा , खनिज पदार्थ , pH , स्थलाकृति |

2. जैविक घटक ( 10:00 AM ) :-  उत्पादक स्वपोषी ; उपभोक्ता परपोषी ; अपघटक मृतपोषी |

  • उत्पादक स्वपोषी :- प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाने वाला सजीव |
  • उपभोक्ता परपोषी :- वे जीव जो अपना भोजन उत्पादकों या अन्य उपभोक्ताओं को खाकर प्राप्त करते हैं |
  • उपभोक्ता परपोषी के प्रकार :- प्राथमिक उपभोक्ता --- द्वितीयक उपभोक्ता --- तृतीयक उपभोक्ता --- चतुर्थ उपभोक्ता |
  • अपघटक मृतपोषी :- जीव जो मृत पादपों और जीवों के विघटन से अपना भोजन प्राप्त करते हैं |
प्राथमिक उपभोक्ता  द्वितीयक उपभोक्ता तृतीयक उपभोक्ता सर्वाहारी
यह आहार हेतु प्रत्यक्ष रूप से पादपों पर निर्भर होते हैं | उदाहरण के लिए शाकाहारी जीव  यह आहार हेतु प्राथमिक उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं | यह आहार हेतु द्वितीयक  उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं |  यह पादप और जीवों दोनों का आहार करते हैं |

महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ ( 10:15 AM ) :- 

1.  ईकोटोन / संक्रमिका :-

  • दो बायोम (विविध पारितंत्रों) के मध्य स्थित संक्रमण क्षेत्र या दो बायोम के संयोजन क्षेत्र को इकोटोन या संक्रमिका कहा जाता है।
  • उदाहरण- मैंग्रोव वन (समुद्र एवं स्थलीय पारितंत्र के मध्य); घास के मैदान (वन एवं मरुस्थल के मध्य); ज्वारनदमुख या एश्चुअरी (स्वच्छ जल एवं लवणौय जल के मध्य) तथा
  • नदी तट या दलदली भूमि (शुष्क एवं आर्द्र भूमि के मध्य) संक्रमिका का कार्य करते हैं। 

2. ईकोलाइन / पारिस्थितिकी प्रवणता ( 10:28 AM ):-

  • ईकोलाइन या पारिस्थितिकी प्रवणता वह क्षेत्र है, जो आनुक्रमिक एवं नियमित रूप से एक पारितंत्र से दूसरे पारितंत्र में रूपांतरित होता है।
  • ऐसा तब होता है, जब प्रजातियों के संगठन के संदर्भ में दोनों पारितंत्रों के मध्य कोई निश्चित सीमा नहीं होती है।
  • यह पर्यावरणीय प्रवणता (अजैविक घटकों जैसे- तुंगता, तापमान (thermocline), लवणता (halocline), गहराई आदि में आनुक्रमिक परिवर्तन} में होती है।

3. कोर प्रभाव ( Edge effect ) --- कोर प्रजाति ( Edge species ) ( 10:44 AM ) :- 

ऊदबिलाव ( 11:11 AM ) |

पारिस्थितिकी निकेत / Ecological Niche ( 11:19 AM ) :- 

  • पारिस्थितिक निकेत किसी प्रजाति की उसके पारितंत्र या पर्यावास में विशिष्ट कार्यात्मक भूमिका एवं स्थिति को प्रदर्शित करता है।
  • पर्यावास निकेत (Habitat niche) - जहां प्रजाति रहती है ।
  • खाद्य निकेत - प्रजाति क्या खाती है एवं क्या खाद्य अपघटित करती है तथा किस प्रजाति के साथ संघर्ष करती है।
  • जननीय निकेत (Reproductive niche) - प्रजाति द्वारा कैसे एवं कब प्रजनन किया जाता है। 
  • भौतिक एवं रासायनिक निकेत (Physical & chemical niche) - तापमान, भू-आकृति, भूमि का ढलान, आर्द्रता तथा अन्य आवश्यकताएं।
  • यदि हम प्रजातियों को उनके मूल पर्यावास में संरक्षित करना चाहते हैं, तो हमें प्रजातियों की निकेत आवश्यकताओं के बारे में ज्ञात होना चाहिए |

पारिस्थितिक निकेत को प्रभावित करने वाले कारक :-

  • पारिस्थितिक निचे को प्रभावित करने वाले कारक जैविक या अजैविक (निर्जीव) दोनों प्रकार के हो सकते हैं ; जिसमें शामिल है-
  • भोजन और पोषक तत्वों की उपलब्धता ;
  • शिकारियों और प्रतिस्पर्धी प्रजातियों का घटना ;
  • तापमान ;
  • उपलब्ध प्रकाश की मात्रा ; 
  • मिट्टी की नमी ; 

पारिस्थितिकी निकेत मॉडल ( 11:39 AM ) :- 

  • पारिस्थितिक निकेत मॉडलिंग मौजूदा निवास स्थान के लिए नई संभावनाओं या नए निवासियों की पहचान करने के लिए एक पूर्वानुमान उपकरण है , और यहां तक कि नए भौगोलिक स्थानों के लिए भी जहां एक वांछनीय पौधा अच्छी तरह से विकसित हो सकता है।
  • मॉडलिंग में पर्यावरण के बारे में डेटा की तुलना करने और किसी दिए गए पारिस्थितिक क्षेत्र के लिए आदर्श स्थितियों के बारे में पूर्वानुमान लगाने के लिए कंप्यूटर एल्गोरिदम का उपयोग शामिल है।

पारिस्थितिक निकेत मॉडलिंग का महत्व :-

  • पारिस्थितिकी विज्ञानी संरक्षण प्रयासों के साथ-साथ कृषि में भविष्य के विकास के लिए मॉडलिंग से प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हैं।
  • पारिस्थितिक निकेत मॉडलिंग का उपयोग बदलते पारिस्थितिक परिदृश्यों के संदर्भ में आर्थिक व्यवहार्यताओं की जांच करने के लिए किया जा सकता है ।

इसे भारतीय संदर्भ में कैसे लागू किया जा सकता है?

  • एक हालिया पेपर में हिमाचल प्रदेश की केसर की खेती की रणनीतियों में भारत की भौगोलिक और कषि अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में पारिस्थितिक निकेत मॉडलिंग के उपयोग पर प्रकाश डाला गया है।
  • केसर ग्रीस का मूल पौधा है; हालाँकि, इसे जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों और भारत के कई राज्यों में मिट्टी में उगाया जा सकता है।
  • भारत विश्व का 5% केसर पैदा करता है ।
  • जम्मू और कश्मीर की समशीतोष्ण जलवायु उच्च पीएच मान (6.3 से 8.3) की अच्छी जल निकासौ वाली मिट्टी, लगभग 25 डिग्री सेल्सियस के गर्मियों के तापमान (जब फूल विकसित होते हैं) और अच्छी मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता के लिए उपयुक्त है।
  • इसी प्रकार अन्य देशी फसलों के लिए इस रणनीति को लाग करने से अन्य क्षेत्रों को भी आर्थिक लाभ मिल सकता है ।

केसर का पौधा ( 11:47 AM ) :- 

  • वैज्ञानिक नामः क्रोकस सैटिवस |
  • केसर का पौधा भूमिगत तनों के माध्यम से फैलता है जिन्हें कॉर्म कहा जाता है।
  • यह भूमध्यसागरीय जलवायु परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त है ।
  • पौधे के फूल में तीन चमकीले लाल रंग के स्टिग्माटा होते हैं, जिन्हें वाणिज्यिक केसर के लिए हाथ से चुना और सुखाया जाता है।
  • प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथों में तंत्रिका तंत्र के विकारों के इलाज के लिए केसर का उपयोग बताया गया है ।
  • यह खाद्य पदार्थों में स्वाद और सार जोड़ता है।

पारिस्थितिक निकेत मॉडलिंग के प्रभाव ( 11:53 AM ) :- 

सकारात्मक प्रभाव :- 

  • क्षेत्र में कृषि विकास |
  • नई जगह का विकास |
  • अर्थव्यवस्था का समर्थन |
  • भारत की प्रौद्योगिकियों की क्षमता का उपयोग |

नकारात्मक प्रभाव :- 

  • विकास क्षेत्र में स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकता है |
  • जंगली जानवरों और कीड़ों द्वारा नष्ट किया जा सकता है |
  • मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण जंगलों में अज्ञात क्षेत्रों का उपयोग फसल की खेती के लिए किया जा सकता है |

पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य / Functions of an ecosystem ( 11:56 AM ) :- 

पारिस्थितिकी तंत्र एक जटिल परिवर्तनात्मक तंत्र है, यह निम्नलिखित कार्य करता है: -

  • खाद्य शृंखला के माध्यम से ऊर्जा का प्रवाह |
  • पोषक तत्वों का चक्रण (भू- जैव रासायनिक चक्र) |
  • पारिस्थितिकीय अनुक्रम या पारिस्थितिकी तंत्र का विकास |
  • समस्थापन (या संतांत्रिका) या पुनर्भरण नियंत्रण तंत्र 

Topic for next class - पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह तथा पारितंत्र के अन्य कार्य |