डिजिटल फसल आकलन का परिचय
भारत में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय फसल क्षेत्र के आकलन की पारंपरिक मैनुअल पद्धति (जिसे 'गिरदावरी' प्रणाली के नाम से जाना जाता है) से उपग्रह डेटा का उपयोग करके डिजिटल दृष्टिकोण की ओर बदलाव कर रहा है। इस बदलाव का उद्देश्य कृषि सांख्यिकी में सटीकता और दक्षता में सुधार करना है।
उपग्रह आधारित फसल अनुमान
- खरीफ की फसल के लिए पहला अग्रिम अनुमान सितंबर में जारी किया जाएगा और इसमें पारंपरिक 'गिरदावरी' प्रणाली के स्थान पर उपग्रह डेटा का उपयोग किया जाएगा।
- प्रारंभिक पायलट अध्ययनों से पता चला है कि उपग्रह विधि 93-95% की सटीकता रेंज प्रदान करती है, जो पारंपरिक विधि की तुलना में काफी अधिक है।
- यह डिजिटल प्रणाली सभी जिलों को कवर करेगी, जिससे फसल क्षेत्र अनुमान की विश्वसनीयता बढ़ेगी और बार-बार संशोधन की आवश्यकता कम होगी, जिससे अस्थिरता भी घटेगी।
- उपग्रह डेटा की सहायता से अब बेरी, एवोकाडो, ड्रैगन फ्रूट, कीवी जैसी नई और उभरती फसलों के क्षेत्रफल का अनुमान भी लगाया जा सकेगा, जो मैनुअल विधि द्वारा कवर नहीं किए जाते हैं।
कार्यान्वयन और प्रभाव
मंत्रालय ने पिछले वर्ष उपग्रह आधारित आकलन का परीक्षण शुरू किया था, तथा राज्य सरकारों के सहयोग से डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल क्रॉप सर्वे (DCS) का आयोजन किया था।
- डिजिटल क्रॉप सर्वे (DCS) को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और ओडिशा में लागू किया गया, जिसमें खरीफ 2024 के लिए सभी जिलों को शामिल किया गया।
- सर्वेक्षण का उद्देश्य मैनुअल 'गिरदावरी' प्रणाली की जगह लेना है और इससे विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में धान की फसल के अंतर्गत क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
निष्कर्ष
फसल क्षेत्र के पूर्णतः डिजिटल अनुमान की यह पहल कृषि आंकड़ों के संग्रहण में एक बड़ा बदलाव है। यह कदम बेहतर योजना, नीति निर्माण, और नई व मौजूदा फसलों के लिए सटीक निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होगा।