केंद्र सरकार ने वन (संरक्षण और संवर्धन) अधिनियम 1980 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए मौजूदा 2023 नियमों में संशोधन किया है।
इस संशोधन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- मंजूरी को सरल बनाना: रक्षा, राष्ट्रीय महत्त्व और आपातकालीन परियोजनाओं के लिए ऑफ़लाइन आवेदनों के प्रावधानों के साथ सैद्धांतिक मंजूरी की वैधता को 2 से 5 वर्ष तक बढ़ाया गया है।
- चरण-I (सैद्धांतिक) और चरण-II (अंतिम) अनुमोदन की स्पष्ट परिभाषा प्रदान की गई है।
- प्रतिपूरक वनीकरण संबंधी सुधार: भूमि बैंकिंग प्रणाली शुरू की जाएगी तथा प्रतिपूरक वनीकरण संबंधी अनिवार्यताओं को पूरा करने के लिए मौजूदा केंद्रीय योजना के तहत वनरोपण की अनुमति दी गई है।
- चरण-I अनुमोदन के बाद राज्य वन भूमि को वन विभागों को हस्तांतरित कर सकते हैं।
- रणनीतिक संसाधन प्रबंधन: इसमें महत्वपूर्ण खनिजों के खनन के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए गए हैं। इसमें भूमि उपयोग की न्यूनतम अवधि को 20 वर्ष से घटाकर 10 वर्ष कर दिया गया है।
- कानून को मजबूती से लागू करना: इसके तहत बेहतर निगरानी और रिपोर्टिंग संबंधी अनिवार्यताओं के साथ कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए वन अधिकारियों के अधिकार का विस्तार किया गया है।
वन (संरक्षण) अधिनियम का विकास
- 1980 से पूर्व: वन राज्य सूची सूचि का विषय थाथे। इसलिए कृषि, उद्योग, खनन आदि के लिए वन भूमि का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था।
- 42वें संविधान संशोधन (1976) के द्वारा वनों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: वन भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए करने की प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके वनों की कटाई पर रोक लगाई गई।
- 1988 में संशोधन: इसके तहत वन भूमि को निजी संस्थाओं को लीज पर देना विनियमित किया गया।
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023: इसका उद्देश्य जलवायु संबंधी लक्ष्यों के अनुरूप विकास करना तथा विकास को पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ संतुलित करना है।