सुर्ख़ियों में क्यों?
दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के आवास पर करोड़ों रुपये नकद मिलने से भारत की उच्चतर न्यायपालिका में जवाबदेही को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
अन्य संबंधित तथ्य
हाल की कुछ घटनाओं ने न्यायिक जवाबदेही पर बहस को तेज कर दिया है:
- कुछ वर्ष पहले, भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष पैनल का गठन किया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए लोकपाल के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें यह कहा गया था कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश भी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा प्रमुख तंत्र
- पद से हटाया जाना: वर्तमान में, उच्चतर न्यायपालिका के किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटाने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 तथा न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अंतर्गत प्रावधान मौजूद हैं।
- 1999 की आंतरिक जांच प्रक्रिया: यह न्यायिक नैतिकता को नियंत्रित करने वाले दो महत्वपूर्ण चार्टर्स - न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन, 1997 (Restatement of Values of Judicial Life, 1997) और न्यायिक आचरण संबंधी बैंगलोर सिद्धांत, 2002 (Bangalore Principles of Judicial Conduct) - पर आधारित है।
- CJI सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों के आचरण के खिलाफ शिकायतें प्राप्त कर सकता है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हाई कोर्ट्स के न्यायाधीशों के आचरण के खिलाफ शिकायतों का निपटान कर सकता है।
- तीन सदस्यीय समिति शिकायत की जांच करती है और पद से हटाने या आपराधिक कार्रवाई की सिफारिश कर सकती है। उदाहरण के लिए- न्यायमूर्ति सौमित्र सेन और निर्मल यादव को इस प्रकार की समितियों के माध्यम से दोषी पाया गया था।
- किसी हाई कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित जांच समिति में उस हाई कोर्ट को छोड़कर अन्य हाई कोर्ट्स के दो मुख्य न्यायाधीश तथा एक न्यायाधीश शामिल होता है।
- किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट का एक न्यायाधीश तथा अन्य हाई कोर्ट्स के दो मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीश शामिल होते हैं।

भारत में न्यायिक जवाबदेही से संबंधित चिंताएं
न्यायिक स्वतंत्रता के साथ टकराव | ज्ञातव्य है कि न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के सरकार के किसी भी प्रयास को प्रायः न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है।
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पद से हटाने की जटिल प्रक्रिया | न्यायाधीशों को पद से हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया इतनी जटिल और लंबी है कि यह उन्हें प्रभावी रूप से जवाबदेह ठहराने में असमर्थ रही है। परिणामस्वरूप, अब तक किसी भी न्यायाधीश को इस संवैधानिक तंत्र के माध्यम से पद से नहीं हटाया गया है।
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कोई अनिवार्य परिसंपत्ति प्रकटीकरण मानदंड नहीं | वर्ष 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि 'न्यायाधीशों को अपने जीवनसाथी और आश्रितों सहित अपनी संपत्तियों की घोषणा CJI के समक्ष करनी चाहिए।'
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सीमित नियंत्रण और संतुलन |
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जवाबदेही में बाधा डालने वाले अन्य प्रावधान |
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न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह
- न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक: इसे 15वीं लोक सभा में पेश किया गया था, लेकिन लोक सभा भंग होने के कारण यह व्यपगत हो गया।
- संसद न्यायिक मानदंड निर्धारित करने तथा विधायिका या कार्यपालिका को अत्यधिक नियंत्रण दिए बिना न्यायिक कदाचार की जांच के लिए उचित तंत्र स्थापित करने हेतु एक नया विधेयक प्रस्तुत कर सकती है।
- राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJC): नियुक्तियों और कदाचार की जांच के लिए भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट (80वीं व 121वीं) द्वारा प्रस्तावित।
- NJC को न्यायिक सदस्य के अलावा गैर-न्यायिक सदस्य शामिल करने की सलाह दी गई है।
- स्थायी अनुशासन समिति: न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए केंद्रीय स्तर पर न्यायपालिका के सदस्यों वाली एक स्थायी अनुशासन समिति गठित की जानी चाहिए।
- यह समिति कदाचार के मामूली मामले में चेतावनी, फटकार या सलाह दे सकती है। हालांकि, कदाचार के गंभीर मामले में न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत न्यायिक जांच समिति गठित करने का अनुरोध कर सकती है।
- न्यायिक निरीक्षण: न्यायाधीशों के लिए एक स्थायी प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जा सकती है, जिसके माध्यम से निर्धारित मानकों में चूक, या न्यायाधीशों के संदिग्ध आचरण को तुरंत प्रकाश लाया जा सके।