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भारत का वास्तविक प्रजनन संकट विकल्पों का है, संख्याओं का नहीं

14 Jun 2025
13 min

विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2025

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने वास्तविक प्रजनन संकट पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें तेजी से बदलती दुनिया में प्रजनन से जुड़े फैसलों के अधिकार के महत्व पर जोर दिया गया है। यह संकट केवल प्रजनन दर में गिरावट के बारे में नहीं है, बल्कि महिलाओं और कपल्स की प्रजनन संबंधी आकांक्षाओं की पूर्ति न होने के बारे में भी है। 

वैश्विक जनसांख्यिकीय रुझान

  • विश्व की प्रजनन दर 1960 के लगभग 5 से घटकर 2024 में 2.2 हो गई।
  • विश्व के आधे से अधिक देशों में अब प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 से कम है। 
  • भारत की प्रजनन दर 2005 के 2.9 से घटकर 2020 में क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ 2.0 हो गई।

प्रजनन संबंधी चुनौतियाँ

  • एक ऑनलाइन सर्वेक्षण से व्यापक रूप से अधूरी प्रजनन आकांक्षाओं का पता चला, जिसमें दोहरी चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया: 
    • कम प्रजनन क्षमता: अपेक्षा से कम बच्चे होना। 
    • अतिप्राप्त प्रजनन क्षमता: अपेक्षा से अधिक बच्चे होना। 
  • आर्थिक चुनौतियाँ, सामाजिक मानदंड और रिलेशनशिप से संबंधित असमान गतिशीलता प्रमुख बाधाएं हैं। 
  • 30% से अधिक भारतीय उत्तरदाताओं ने बताया कि जब वे बच्चा पैदा करना चाहते थे तो उन्हें इसमें चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

महिलाओं की प्रजनन स्वायत्तता

  • कार्यस्थल पर सहायक नीतियों के अभाव के कारण महिलाओं को करियर और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
  • भारत में विवाह और संतानोत्पत्ति संबंधी दबाव अभी भी जारी है, जिससे महिलाओं की पसंद प्रभावित हो रही है। 
  • बांझपन आज भी कलंकित विषय है, इसका उपचार महंगा है तथा निजी क्षेत्रक का इसमें दबदबा है। 

गर्भनिरोधक और संतानोत्पत्ति पैटर्न

  • नसबंदी पर व्यापक निर्भरता प्रजनन विकल्पों को सीमित कर देती है।
  • प्रजनन क्षमता को बनाए रखने के लिए आधुनिक, प्रतिवर्ती गर्भनिरोधक विधियों की आवश्यकता है। 
  • बच्चे पैदा करने के बदलते पैटर्न से पता चलता है कि समय से पहले बच्चे पैदा करने में कमी आ रही है तथा अधिक महिलाएं बाद में गर्भधारण का विकल्प चुन रही हैं। 

नीति और योजना

  • जनसंख्या परिवर्तन से संबंधित गंभीर चर्चाएं अक्सर लोगों की वास्तविक आकांक्षाओं को नजरअंदाज कर देती हैं। 
  • नीतियों का ध्यान नियंत्रण करने के बजाय व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाने पर होना चाहिए। 
  • महिलाओं की प्रजनन स्वायत्तता को समझने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 

रिपोर्ट में जनसांख्यिकीय लचीलापन और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिए प्रजनन नीतियों को मानव अधिकारों और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के साथ संरेखित करने के महत्व को रेखांकित किया गया है। 

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