पेंशन का महत्व
विशेष रूप से कम होती आय क्षमता, बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत और मुद्रास्फीति के कारण सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक स्थिरता और सम्मान बनाए रखने के लिए पेंशन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत में वर्तमान पेंशन परिदृश्य
- भारतीय पेंशन परिसंपत्तियां सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 17% हिस्सा हैं, जबकि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में यह 80% तक है।
- भारत के केवल 12% कार्यबल को ही औपचारिक पेंशन योजना का लाभ प्राप्त है।
- कवरेज असंगत है तथा यह सार्वजनिक क्षेत्रक और संगठित निजी क्षेत्रक के श्रमिकों को लाभ पहुंचाता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली और अटल पेंशन योजना जैसी स्वैच्छिक योजनाओं पर निर्भर है, जो वित्त वर्ष 24 में लगभग 5.3% आबादी को ही कवर करती थी।
पेंशन कवरेज बढ़ाने की चुनौतियाँ
- मापनीयता, संवेदनशीलता और स्थिरता के मुद्दे विस्तार में बाधा डालते हैं।
- कम वित्तीय साक्षरता के कारण जागरूकता का अभाव एक बड़ी बाधा है।
- मौजूदा योजनाओं की खंडित प्रकृति अनौपचारिक श्रमिकों के लिए कवरेज को जटिल बनाती है।
- स्ट्रक्चर्ड पेंशन प्रणालियों के उदाहरणों में जापान की अनिवार्य योजनाएं और न्यूजीलैंड की सार्वभौमिक पेंशन शामिल हैं।
सुधार के लिए रणनीतियाँ
- तीन-स्तरीय ढांचे को लागू करना:
- अनिवार्य बुनियादी पेंशन गारंटी, सभी के लिए एक समान दर पर अंशदायी पेंशन की पेशकश।
- नियोक्ता-आधारित योजनाओं और स्वतः नामांकन के साथ व्यावसायिक पेंशन।
- स्वैच्छिक पेंशन बचत, कर लाभ और बाजार से जुड़े रिटर्न के माध्यम से प्रोत्साहन।
- स्कूल और कॉलेज स्तर के अभियानों के माध्यम से वित्तीय साक्षरता बढ़ाना।
- ईज़ ऑफ एक्सेस और पारदर्शिता के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश करना।
- मजबूत निवेश विनियमनों के माध्यम से तरलता और स्थिरता सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए एक अच्छी तरह से स्ट्रक्चर्ड और समावेशी पेंशन प्रणाली की आवश्यकता है। यह 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है। नीति निर्माताओं को व्यावसायिक स्थिति के बावजूद सभी के लिए आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करने हेतु अभी से कार्य करने की आवश्यकता है।