पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025
भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने रासायनिक रूप से दूषित स्थलों के प्रबंधन के लिए नए नियम पेश किए हैं, जिन्हें पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 कहा जाता है। ये नियम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत स्थापित किए गए हैं और रसायनों से दूषित स्थलों के प्रबंधन के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं।
दूषित स्थलों की परिभाषा और पहचान
- दूषित स्थल वे हैं जहां ऐतिहासिक रूप से खतरनाक और अन्य अपशिष्टों को फेंका जाता था, जिसके कारण मृदा, भूजल और सतही जल संदूषित होता था।
- देश भर में 103 दूषित स्थलों की पहचान की गई है, लेकिन केवल सात पर ही सुधार कार्य शुरू हो पाया है।
नए नियमों के उद्देश्य और दिशानिर्देश
नये नियमों का उद्देश्य दूषित स्थलों के प्रबंधन की प्रक्रिया को कानूनी रूप से संहिताबद्ध करना है:
- जिला प्रशासन: "संदेहास्पद दूषित स्थलों" पर अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना आवश्यक है।
- राज्य बोर्ड/संदर्भ संगठन:
- 90 दिनों के भीतर स्थलों की जांच करना और प्रारंभिक मूल्यांकन प्रदान करना।
- यह निर्धारित करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण करना कि क्या स्थल संदूषित हैं तथा खतरनाक एवं अन्य अपशिष्ट नियम 2016 के अंतर्गत चिह्नित खतरनाक रसायनों पर ध्यान केंद्रित करना।
- यदि खतरनाक रसायनों का स्तर सुरक्षा सीमा से अधिक हो तो दूषित स्थलों का प्रचार करना तथा वहां पहुंच पर प्रतिबंध लगाना।
- एक 'संदर्भ संगठन' को सुधार योजना विकसित करने का कार्य सौंपना।
- 90 दिनों के भीतर प्रदूषण लागत के लिए जिम्मेदार पक्षों की पहचान करना और उन्हें जवाबदेह ठहराना।
वित्तीय और कानूनी जिम्मेदारियाँ
- प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों को सुधार लागत वहन करनी होगी।
- ऐसे मामलों में जहां जिम्मेदार पक्ष भुगतान करने में असमर्थ हों, वहां केंद्र और राज्य मिलकर सफाई लागत की व्यवस्था करेंगे।
- भारतीय न्याय संहिता (2023) के अनुसार, यदि प्रदूषण के कारण जीवन की हानि या क्षति होती है तो आपराधिक दायित्व लागू होता है।
बहिष्कार
ये कानून रेडियोधर्मी अपशिष्ट, खनन कार्यों, तेल द्वारा समुद्र के प्रदूषण या डंप साइटों से ठोस अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण को कवर नहीं करते हैं, क्योंकि इन मुद्दों को नियंत्रित करने के लिए अलग कानून हैं।