भारत और चीन: आर्थिक विरोधाभास
भारत और चीन ने आर्थिक विषमताओं पर एक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इसमें निवेश और उपभोग असंतुलन जैसी समान चुनौतियों के बावजूद दोनों देशों की रणनीतियाँ अलग-अलग हैं।
भारत की आर्थिक चुनौतियाँ
- भारत में निवेश दरें स्थिर बनी हुई हैं तथा कॉर्पोरेट निवेश करने में अनिच्छुक हैं।
- सरकारी पहलों में शामिल हैं:
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं।
- नये विनिर्माण संयंत्रों के लिए कम कर दरें।
- निजी निवेश चक्र को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक निवेश में वृद्धि।
- निवेश और विनिर्माण चार राज्यों में केंद्रित हैं: गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक।
- राष्ट्रीय विनिर्माण नीति जैसी नीतियों का लक्ष्य 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र की GDP हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना है। इसके बावजूद इसमें स्थिरता बनी हुई है।
- हाल के नीतिगत बदलावों में कर कटौती और GST में कटौती के माध्यम से उपभोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इससे सार्वजनिक व्यय पर राजकोषीय बाधाएं उत्पन्न हुई हैं।
चीन की आर्थिक रणनीति
- चीन अपने निवेश-निर्यात मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखे हुए है तथा घरेलू खपत को बढ़ाने की दिशा में न्यूनतम कदम उठा रहा है।
- प्रमुख आर्थिक संकेतक:
- निवेश से सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात लगभग 40%
- निर्यात 3.58 ट्रिलियन डॉलर तथा 2024 में व्यापार अधिशेष 1 ट्रिलियन डॉलर के करीब।
- मुद्रा प्रबंधन का रुझान कम मूल्यांकन (Undervaluation) की ओर है, ताकि निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सके, भले ही इससे घरेलू उपभोग शक्ति (Household purchasing power) कम हो रही हो।
विनिमय दर नीतियां
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) आधिकारिक तौर पर रुपये को लक्ष्य नहीं बनाता है, लेकिन इसे स्थिर करने के लिए हस्तक्षेप करता है। इससे निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता और आयात लागत प्रभावित होती है।
- चीन ऐतिहासिक रूप से अपनी मुद्रा का मूल्य कम रखता है, जिससे निर्यात बढ़ता है, लेकिन आयात महंगा हो जाता है।
संरचनात्मक मुद्दे और सुधार
- चीन को अत्यधिक निवेश, कम घरेलू खपत और वृद्ध होती जनसंख्या जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत कम निवेश गतिविधि, उच्च अनौपचारिकता और अपर्याप्त रोजगार सृजन से जूझ रहा है।
- दोनों देशों को इन गंभीर मुद्दों के समाधान के लिए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है, लेकिन आम सहमति और क्रियान्वयन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
नीति प्रक्षेप पथ और परिणाम
- चीन अपने निवेश-निर्यात आधारित विकास मॉडल पर कायम है तथा वैश्विक बाजार में अपनी सीमाओं का परीक्षण कर रहा है, जो अतिरिक्त क्षमता को अवशोषित करने के लिए तैयार नहीं है।
- विनिर्माण क्षेत्र में सुस्त वृद्धि के बीच भारत ऋण-आधारित उपभोग और कर प्रोत्साहन पर निर्भर है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों देशों की नीति का ध्यान विकास की प्राथमिकता से हटकर अन्य रणनीतियों की ओर चला गया है।