आधुनिक युद्ध और आत्मनिर्भरता
आधुनिक युद्धकला अब बड़ी सेनाओं और भारी टैंकों के पारंपरिक मानकों से हटकर, कम लागत वाले हथियारों और उन्नत तकनीक के एकीकरण पर केंद्रित हो गई है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यह संयोजन छोटी सेनाओं को अधिक शक्तिशाली विरोधियों को प्रभावी ढंग से चुनौती देने में सक्षम बनाता है। वे आत्मनिर्भरता की वकालत करते हैं, जिसमें सेना, उद्योग और शिक्षा जगत को स्वदेशी क्षमताएँ विकसित करने के लिए मिलकर काम करना होगा।
प्रौद्योगिकी और अनुकूलनशीलता
- जनरल द्विवेदी ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धक्षेत्र में लाभ निरंतर विकसित होती प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करता है, जिसमें हथियार प्रणालियों को तेजी से उन्नत किया जा सकता है।
- आत्मनिर्भरता घरेलू उत्पादन से कहीं आगे जाती है; इसमें प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकलने के लिए नवाचार की आवश्यकता होती है।
बजट और आर्थिक प्रभाव
- अगले दशक में आधुनिकीकरण के लिए अनुमानित रक्षा व्यय प्रतिवर्ष 3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने वाला है।
- प्रधानमंत्री मोदी का "मेड इन इंडिया" प्रणालियों पर जोर रक्षा अर्थशास्त्र और सिद्धांत में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
भारतीय वायु सेना का आधुनिकीकरण
मिग-21 बाइसन स्क्वाड्रनों की सेवानिवृत्ति भारतीय वायु सेना (IAF) के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो अब लड़ाकू क्षमता में कमी का सामना कर रही है। हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस मार्क-1A (MK1A) का उद्देश्य इसी कमी को पूरा करना है।
- वर्तमान लड़ाकू क्षमता 42 की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले घटकर 29 स्क्वाड्रन रह गई है।
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का लक्ष्य भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए MK1A का उत्पादन बढ़ाना है।
घरेलू उपकरणों का लागत लाभ
- तेजस MK-1A जेट की औसत लागत 74 मिलियन डॉलर है, जो राफेल जैसे आयातित जेट की तुलना में काफी सस्ती है।
- आकाश मिसाइल और पिनाका रॉकेट लांचर जैसी घरेलू प्रणालियां पश्चिमी समकक्षों की तुलना में काफी लागत बचत प्रदान करती हैं।
नौसेना प्लेटफॉर्म
- INS विक्रांत, भारत का पहला स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत है, जो भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप आत्मनिर्भर क्षमता का प्रतीक है।
- भविष्य की योजनाओं में प्रस्तावित आईएनएस विशाल जैसे वाहकों में उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना शामिल है।
उभरते खतरों में आत्मनिर्भरता
- DRDO द्वारा विकसित ड्रोन-डिटेक्ट, डिटर एंड डिस्ट्रॉय (D4) प्रणाली राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं को बढ़ाती है।
- ऑपरेशन सिंदूर ने ब्रह्मोस मिसाइल और आकाश रक्षा प्रणाली जैसी स्वदेशी प्रणालियों की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया।
रक्षा उत्पादन और निर्यात
- वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात 23,622 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिससे अनुसंधान एवं विकास तथा उत्पादन लागत को समर्थन मिला।
- रक्षा मंत्रालय का लक्ष्य अगले तीन वर्षों में 3 लाख करोड़ रुपये के स्वदेशी उत्पादों का निर्माण करना है।
रिकॉर्ड उत्पादन वृद्धि
- वित्त वर्ष 2024-25 में रक्षा उत्पादन 18% बढ़कर 1,50,590 करोड़ रुपये हो गया।
- सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों ने उत्पादन में 77% का योगदान दिया, जबकि निजी क्षेत्र का हिस्सा बढ़कर 23% हो गया।
कुल मिलाकर, आत्मनिर्भरता और नवोन्मेषी रक्षा क्षमताओं पर भारत का ध्यान रक्षा क्षेत्र को नया आकार दे रहा है, जिससे लागत-प्रभावशीलता के साथ-साथ उन्नत युद्ध क्षमताएँ भी जुड़ रही हैं। यह रणनीति भारत को आधुनिक युद्ध में तेज़ी से अनुकूलन और नवोन्मेष करने की स्थिति में लाती है, जिससे आत्मनिर्भरता एक रणनीतिक लाभ के रूप में उभरती है।