एस्ट्रोसैट: अंतरिक्ष अवलोकन का एक दशक
भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष खगोल विज्ञान वेधशाला, एस्ट्रोसैट, 28 सितंबर, 2025 को अपनी 10वीं वर्षगांठ मनाएगी, जो अंतरिक्ष अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
प्रक्षेपण और मिशन जीवन
- 28 सितंबर, 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से PSLV-C30 (XL) रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया।
- मूलतः इसे पांच वर्ष के मिशन जीवन के लिए डिजाइन किया गया था, तथा यह एक दशक बाद भी काम कर रहा है और मूल्यवान डेटा प्रदान कर रहा है।
वैज्ञानिक योगदान
- एस्ट्रोसैट एक बहु-तरंगदैर्ध्य अंतरिक्ष वेधशाला है जिसमें पांच पेलोड हैं।
- महत्वपूर्ण खोजों में शामिल हैं:
- ब्लैक होल से लेकर न्यूट्रॉन तारों तक के अवलोकन।
- 9.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर आकाशगंगाओं से FUV फोटॉनों का पहली बार पता लगाया गया।
- यूवी/दृश्यमान से लेकर उच्च ऊर्जा एक्स-रे तक विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम की जानकारी।
जहाज पर पेलोड
- विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न क्षेत्रों का निरीक्षण करने के लिए पांच वैज्ञानिक पेलोड:
- अल्ट्रा वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (UVIT)
- बड़े क्षेत्र एक्स-रे आनुपातिक काउंटर (LAXPC)
- कैडमियम-जिंक-टेल्यूराइड इमेजर (सीजेडटीआई)
- सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप (SXT)
- स्कैनिंग स्काई मॉनिटर (SSM)
सहयोगात्मक प्रयास
- प्रमुख भारतीय खगोल विज्ञान संस्थानों के योगदान से इसरो द्वारा विकसित:
- अंतर विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी केंद्र (IUCAA), पुणे
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), मुंबई
- भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIAP) और रमन अनुसंधान संस्थान (RRI), बेंगलुरु
- भारत के विश्वविद्यालयों तथा कनाडा और ब्रिटेन के संस्थानों की भागीदारी।