दक्षिण गंगोत्री की स्थापना
दक्षिण गंगोत्री, अंटार्कटिका में भारत का पहला स्थायी अनुसंधान केंद्र था। इसे 1983-84 में डॉ. हर्ष के. गुप्ता के नेतृत्व में भारत के तीसरे अंटार्कटिक अभियान के दौरान मात्र 60 दिनों से भी कम समय में स्थापित किया गया था।
पृष्ठभूमि और प्रस्ताव
- प्रख्यात भू-वैज्ञानिक और भूकंपविज्ञानी डॉ. हर्ष के गुप्ता ने अंटार्कटिका में पांच अनुसंधान केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था।
- हालांकि उनके मूल प्रस्ताव को शुरुआत में नहीं चुना गया था, लेकिन उनकी उत्कृष्ट साख और नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें एक स्थायी आधार स्थापित करने के अभियान का नेतृत्व करने के लिए चुना गया।
तैयारी और चुनौतियाँ
- अभियान की शुरुआत: यह अभियान 3 दिसंबर, 1983 को फिनिश मूल के बर्फ-श्रेणी के मालवाहक जहाज, 'फिनपोलारिस' (Finnpolaris) पर सवार एक टीम के साथ शुरू हुआ।
- टीम को जहाज पर अस्पताल स्थापित करने और 40º दक्षिणी अक्षांश (जिसे अपनी अशांत स्थितियों के लिए जाना जाता है) के उबड़-खाबड़ समुद्रों में नेविगेट करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- 29 दिसंबर को हुए एक हेलीकॉप्टर क्रैश ने गंभीर चुनौतियां पेश कीं, फिर भी डॉ. गुप्ता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मिशन पूरा करने की प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया।
सफल निर्माण
- 25 फरवरी, 1984 तक टीम ने 620 वर्ग मीटर के एक स्टेशन का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया, जिसमें रहने के क्वार्टर और अनुसंधान सुविधाएं शामिल थीं।
- इस स्टेशन ने भारत के भविष्य के अंटार्कटिक कार्यक्रम की नींव रखी, जिसके परिणामस्वरूप 40 से अधिक अभियान हुए और अतिरिक्त अनुसंधान केंद्रों (मैत्री और भारती) की स्थापना हुई।
अंटार्कटिक अनुसंधान का महत्व
डॉ. गुप्ता भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु प्रभावों को समझने के लिए अंटार्कटिक अनुसंधान के महत्व पर जोर देते हैं। गोंडवानालैंड (Gondwanaland) महाद्वीप का इतिहास भारत और अंटार्कटिका के बीच भूवैज्ञानिक और जलवायु संबंधों की व्याख्या करता है।