विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) और हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग के लिए नीतिगत छूट
हाल ही में नीतिगत छूट का उद्देश्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) में सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक घटकों जैसे उच्च तकनीक वाले सामानों के विनिर्माण को बढ़ावा देना है। यह पहल निर्मित उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए एक नए प्रयास को दर्शाती है।
प्रमुख नीतिगत परिवर्तन
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए न्यूनतम भूमि आवश्यकता को 50 हेक्टेयर से घटाकर 10 हेक्टेयर कर दिया गया है।
- नेट फॉरेन एक्सचेंज (NFE) की गणना में छूट दी गई है।
- केवल आयात पर निर्भरता के बजाय घरेलू बाजारों से पूंजी, कच्चा माल और घटकों की आपूर्ति की अनुमति दी गई है।
- तैयार माल के आवागमन से जुड़ी शर्तों को सरल बनाया गया है।
ये परिवर्तन भारतीय सेमीकंडक्टर मिशन का समर्थन करते हैं, जिसका उद्देश्य भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और डिजाइन के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
चुनौतियाँ और वर्तमान स्थिति
भारत में 276 SEZs संचालित हैं, जिनमें करीब 7 ट्रिलियन रुपये का निवेश हुआ है। हालांकि, ये केवल 30 लाख लोगों को ही रोजगार प्रदान कर पाए हैं, जो IT और IT-सक्षम सेवा क्षेत्रों में 5.4 मिलियन लोगों के रोजगार से काफी कम है। चीन में SEZs का निर्यात में 60% हिस्सा है, जबकि भारत में इनका हिस्सा लगभग पांचवां है।
- भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) मुख्य रूप से IT और IT-संबंधित सेवाओं द्वारा संचालित होते हैं, जो विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) निर्यात में 60% का योगदान देते हैं।
- न्यूनतम भूमि आकार की आवश्यकताओं में कमी के कारण भूमि अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण बाधा बनी हुई है।
नीतिगत विसंगतियां और समाधान
सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण प्रोत्साहन योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हुई है। 2022 में उद्यम और सेवा केन्द्रों के विकास (DESH) विधेयक का उद्देश्य वैश्विक और घरेलू विनिर्माण दोनों को प्रोत्साहित करना था, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कनेक्टिविटी और अवसंरचना की कमी के कारण SEZs सामान्यतः विकसित क्षेत्रों के पास ही स्थापित किए जाते हैं।
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों को केवल रियल एस्टेट उद्यमों से आगे ले जाने के लिए परिवहन, इंटरनेट, अवसंरचना, आवास, सुरक्षा, स्कूल और अस्पतालों से युक्त एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है।
बार-बार नीतिगत बदलावों के बजाय, भारत की विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति निवेश वातावरण में मौजूद दीर्घकालिक संरचनात्मक समस्याओं को दूर करे, तो यह अधिक प्रभावी सिद्ध होगा।