हाइड्रोजन प्लाज्मा का उपयोग करके संधारणीय निकल निष्कर्षण
एक अभूतपूर्व अध्ययन में यह दिखाया गया है कि कैसे हाइड्रोजन प्लाज़्मा की मदद से निम्न-श्रेणी के अयस्कों से निकेल को एक सतत (संधारणीय) तरीके से निकाला जा सकता है। यह पारंपरिक कार्बन-गहन प्रक्रियाओं की तुलना में पर्यावरण के लिए कम हानिकारक है और एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
निकेल का महत्व
- स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, विशेषकर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के लिए निकेल अत्यंत महत्वपूर्ण धातु है।
- 2040 तक निकेल की मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष से अधिक होने का अनुमान है।
- पारंपरिक तरीकों से निकेल निकालने की प्रक्रिया अत्यधिक कार्बन-उत्सर्जन वाली होती है, जिसमें प्रति टन निकेल पर लगभग 20 टन CO₂ का उत्सर्जन होता है।
निष्कर्षण की नई विधि
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एकल-चरणीय धातुकर्म प्रक्रिया विकसित की है, जिसमें कार्बन के स्थान पर हाइड्रोजन प्लाज्मा का उपयोग किया जाता है:
- यह विधि 18% तक अधिक ऊर्जा-कुशल है।
- यह वर्तमान विधियों की तुलना में प्रत्यक्ष CO2 उत्सर्जन को 84% तक कम कर सकती है।
हाइड्रोजन प्लाज्मा प्रक्रिया
- इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन गैस को एक विद्युत आर्क के माध्यम से उच्च-ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों के संपर्क में लाया जाता है, जिससे हाइड्रोजन प्लाज़्मा बनता है।
- यह प्लाज़्मा धातु ऑक्साइड्स को बहुत तेजी से कम कर देता है। जहां पारंपरिक विधियों में उप-उत्पाद के रूप में CO₂ (कार्बन डाइऑक्साइड) निकलती है, जबकि इस नई प्रक्रिया में जल (H₂O) बनता है।
लैटेराइट अयस्कों पर ध्यान केंद्रित करना
- यह अध्ययन लैटेराइट अयस्कों पर केन्द्रित है, जो भारत में विशेष रूप से ओडिशा के सुकिंदा क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
- इन अयस्कों में निकेल की मात्रा कम होती है, जिस कारण इन्हें अक्सर उपयोग के लायक नहीं समझा जाता है। हालांकि, नई विधि का उपयोग करके इन अयस्कों से भी प्रभावी ढंग से निकेल निकाला जा सकता है।
भारत के लिए निहितार्थ
- यह पद्धति भारत के औद्योगीकरण के लक्ष्य के अनुरूप है, जिसके तहत 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करना है।
- यह पद्धति उच्च गुणवत्ता के अयस्कों के आयात की आवश्यकता को कम करती है तथा घरेलू संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकता है।
चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएँ
यद्यपि औद्योगिक स्तर पर उत्पादन की ओर बदलाव आशाजनक है, फिर भी इसमें निम्नलिखित चुनौतियां हैं:
- बुनियादी ढांचे और नवीकरणीय ऊर्जा में अधिक प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है।
- थर्मोडायनैमिक काइनेटिक्स और ऑक्सीजन स्पीशीज की आपूर्ति पर और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है।
यह अध्ययन कार्बन-गहन विधियों के स्थान पर एक आशाजनक विकल्प प्रदान करता है, जो निकेल निष्कर्षण को एक हरित भविष्य की दिशा में क्रांतिकारी रूप से बदलने की क्षमता रखता है।