अवलोकन
इस लेख में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय राजनयिकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई है। इसमें भारत की कूटनीतिक रणनीतियों, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं और व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थों की आलोचनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
कूटनीतिक प्रयासों की प्रमुख आलोचनाएँ
- समर्थन का अभाव:
- भारत को पहलगाम हमले के लिए संवेदनाएं तो मिलीं, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी हमले के लिए स्पष्ट समर्थन नहीं मिला।
- उरी और पुलवामा जैसी पिछली घटनाओं में भारत को वैश्विक एकजुटता हासिल हुई।
- पाकिस्तान की कूटनीतिक जीत:
- पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में संशोधन कर द रेजिस्टेंस फ्रंट का उल्लेख हटा दिया।
- पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समितियों में स्थान तथा अंतर्राष्ट्रीय ऋण प्राप्त हुआ।
- भारत-पाकिस्तान विवाद पर बैठकें निर्धारित हैं, जिसमें भारत TRF को नामित करने और पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में डालने पर जोर दे रहा है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति के वक्तव्य:
- राष्ट्रपति ट्रम्प की टिप्पणियों ने इस विमर्श को और अधिक अस्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश की और भारत तथा पाकिस्तान को एक ही स्तर पर रख दिया।
कूटनीतिक युद्धाभ्यास
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने व्यापक कूटनीतिक गतिविधियां शुरू कर दी। इनमें 32 देशों का दौरा करने वाले प्रतिनिधिमंडल और विभिन्न उच्च स्तरीय बैठकें शामिल थीं, जिससे कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
संदेश और भू-राजनीतिक धारणा
- मोदी का "न्यू नॉर्मल":
- इसके तहत किसी भी आतंकवादी कृत्य को युद्ध का कृत्य घोषित किया जाएगा, जिससे संघर्ष की सीमा कम हो जाती है।
- उन्होंने कहा कि भारत परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा।
- भारत राज्य और गैर-राज्य कारकों के बीच अंतर नहीं करेगा, जिसका तात्पर्य तीव्र प्रतिक्रिया से है।
वैश्विक धारणा से संबंधित चुनौतियाँ
- कठोर संदेश पर विश्व का दृष्टिकोण:
- वैश्विक संघर्षों के बीच पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पुनः प्राप्त करने के भारत के बयान से बेचैनी पैदा होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय आलोचना:
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर भारत के रुख और इजरायल-गाजा तनाव पर चुप्पी ने चिंताएं बढ़ा दीं।
- भारत की आंतरिक नीतियों, लोकतंत्र और अल्पसंख्यक दर्जे पर वैश्विक चर्चा तेज हो गई है।
निष्कर्ष
आतंकवाद के खिलाफ आत्मरक्षा का भारत का अधिकार निर्विवाद है। हालांकि, आतंकवाद पर अपने सख्त रुख को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए, सरकार को पाकिस्तान से अलग एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और स्थिर राष्ट्र के रूप में भारत की ताकत का लाभ उठाने की जरूरत है।