दूषित स्थलों के प्रबंधन के लिए नए नियम
पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 प्रस्तुत किए हैं। ये नियम भारत भर में विभिन्न स्थलों पर रासायनिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं।
परिभाषा और वर्तमान स्थिति
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दूषित स्थलों को ऐसे क्षेत्रों के रूप में परिभाषित करता है जहां ऐतिहासिक रूप से खतरनाक अपशिष्ट डाला जाता रहा है, जिससे मृदा, भूजल और सतही जल संदूषित होता है।
- वर्तमान में, पूरे भारत में 103 चिन्हित स्थल हैं, जिनमें से केवल सात पर ही सुधारात्मक कार्य शुरू हो पाया है।
ऐतिहासिक संदर्भ
- इससे पहले, खतरनाक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए कोई विनियमन नहीं था, जिसके कारण कई स्थल दूषित हो गए थे।
- 2010 में, पर्यावरण मंत्रालय ने साइट सुधार के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित करने हेतु एक कार्यक्रम शुरू किया था।
कानूनी ढांचा
- नये नियमों के अनुसार जिला प्रशासन को “संदेहास्पद दूषित स्थलों” पर अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होगी।
- राज्य बोर्ड या 'संदर्भ संगठन' 90 दिनों के भीतर प्रारंभिक मूल्यांकन उपलब्ध कराएगा तथा तीन महीने के भीतर विस्तृत सर्वेक्षण करेगा।
उपचार प्रक्रिया
- यदि साइटों पर खतरनाक रसायनों का स्तर सुरक्षित स्तर से अधिक है, तो उनके स्थान का प्रचार किया जाएगा तथा पहुंच प्रतिबंधित कर दी जाएगी।
- विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा सुधार योजना निर्दिष्ट की जाएगी।
- राज्य बोर्ड के पास संदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के लिए 90 दिन का समय है।
- सुधार कार्य की लागत जिम्मेदार लोगों पर पड़ती है, अन्यथा केंद्र और राज्य सरकारें सफाई खर्च की व्यवस्था करती हैं।
इसमें क्या शामिल नहीं है?
- रेडियोधर्मी अपशिष्ट, खनन कार्य, तेल प्रदूषण तथा डंप स्थलों से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण को इसमें शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि इन क्षेत्रों के लिए अलग से कानून मौजूद है।
चुनौतियां
- किसी दूषित स्थल को सुरक्षित स्तर पर वापस लाने के लिए कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है।