फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता
कई पश्चिमी देशों द्वारा फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की घोषणा अंतर्राष्ट्रीय नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। यदि इज़राइल गाजा संघर्ष को समाप्त नहीं करता है और द्वि-राज्य समाधान के आधार पर शांति स्थापित नहीं करता है, तो ब्रिटेन सितंबर में फ़िलिस्तीन को मान्यता दे देगा। फ्रांस और कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य पश्चिमी देशों ने भी फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की इच्छा व्यक्त की है।
ऐतिहासिक संदर्भ
- 1917 के बाल्फोर घोषणा-पत्र में पहली बार फिलिस्तीन में ज्यूविश नेशनल होम के लिए ब्रिटिश समर्थन व्यक्त किया गया।
- फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर इजरायल का कब्जा 1967 में शुरू हुआ और 1990 के दशक के ओस्लो समझौते में दो-राज्य समाधान की वकालत करने के बावजूद, कई पश्चिमी सरकारों ने अंतिम समझौते तक फिलिस्तीन को मान्यता देने में देरी की।
अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के लिए प्रेरक कारक
नरसंहार के आरोप
- इज़राइल पर नरसंहार का आरोप है और उसके प्रधान मंत्री के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय से गिरफ्तारी वारंट जारी है।
यूद्ध के अपराध
- युद्ध अपराधों और नृजातीय सफाए के आरोपों ने इजरायल के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय जनमत को बदल दिया है।
इज़राइल की प्रतिक्रिया और आंतरिक गतिशीलता
सैन्य और राजनीतिक रणनीति
- इजराइल के उद्देश्यों में हमास को नष्ट करना और बंधकों को रिहा करना शामिल था, लेकिन संघर्ष का विस्तार गाजा तक हो गया है।
- वर्तमान सरकार वैश्विक प्रतिक्रिया के बावजूद राजनीतिक नतीजों से बचने और सत्ता बनाए रखने के लिए युद्ध को लम्बा खींच रही है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ और भविष्य के निहितार्थ
- वैश्विक सहयोगी देश इज़राइल की कार्रवाइयों की लगातार आलोचना कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के सदस्य और अन्य पश्चिमी देश गाजा में बढ़ते तनाव पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।
वैश्विक चेतना में बदलाव
- फिलीस्तीनी दुर्दशा के बारे में सामूहिक जागरूकता बढ़ रही है, जो ऐतिहासिक यहूदी पीड़ा के समान है।
- इजरायल के सहयोगियों द्वारा फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना 1948 के बाद की आम सहमति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद, इज़राइली नेतृत्व नृजातीय-राष्ट्रवादी विचारधारा में जकड़ा हुआ है और इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के प्रति बदलते वैश्विक दृष्टिकोण के प्रति प्रतिरोधी है। फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और मान्यता के बारे में बदलती वैश्विक चेतना के बीच यह वैचारिक कठोरता बनी हुई है।