अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में रणनीतिक स्वायत्तता
रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा एक अकादमिक बहस से विकसित होकर भारत की विदेश नीति का एक केंद्रीय विषय बन गई है। इसका तात्पर्य किसी राष्ट्र की विदेश नीति और रक्षा क्षेत्र में बाहरी बाधाओं के बिना, अलगाववाद या तटस्थता से अलग, संप्रभु निर्णय लेने की क्षमता से है। सामरिक स्वायत्तता अपनी शर्तों पर कई शक्तियों के साथ जुड़ने में लचीलेपन और स्वतंत्रता का प्रतीक है।
ऐतिहासिक संदर्भ और भारत की स्थिति
भारत की सामरिक स्वायत्तता की चाहत उसके औपनिवेशिक अतीत और वैश्विक मामलों में संप्रभुता बनाए रखने की इच्छा में निहित है। नेहरू की गुटनिरपेक्षता से लेकर मोदी सरकार की "बहु-गठबंधन" तक, भारत ने लगातार बदलती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुसार अपनी रणनीतियों को ढाला है और प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ बातचीत करते हुए भी अपनी कार्रवाई की स्वतंत्रता बनाए रखी है।
वैश्विक परिदृश्य और चुनौतियाँ
एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय विश्व में बदलाव भारत के लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है। चीन का उदय, रूस की हठधर्मिता और पश्चिम की आंतरिक कलह भारत की सामरिक स्वायत्तता के लिए एक जटिल वातावरण का निर्माण करती है।
भारत-अमेरिका संबंध
- पिछले दो दशकों में रक्षा, खुफिया और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग गहरा हुआ है।
- प्रमुख पहलों में क्वाड समूह और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) शामिल हैं।
- चुनौतियों में व्यापार तनाव और रूस के साथ संबंध कम करने का अमेरिकी दबाव शामिल है।
- भारत स्वतंत्र रुख अपनाता है तथा वैचारिक संरेखण की अपेक्षा राष्ट्रीय हितों पर अधिक ध्यान देता है।
भारत-चीन गतिशीलता
- 2020 के सीमा संघर्षों ने भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा दिया।
- चीन एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार बना हुआ है, जिसके लिए सतर्क सहभागिता और दृढ़ प्रतिरोध की आवश्यकता है।
- भारत, चीन के साथ बहुपक्षीय मंचों में भाग लेते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है।
- सामरिक स्वायत्तता में कूटनीति और आर्थिक जुड़ाव के साथ टकराव को संतुलित करना शामिल है।
भारत-रूस संबंध
- रूस के चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों के बावजूद मजबूत ऐतिहासिक संबंध और रक्षा सहयोग।
- भारत रूस के साथ सैन्य आयात और स्वदेशी उत्पादन के बीच संतुलन बनाते हुए लगातार संपर्क बनाए हुए है।
- सामरिक स्वायत्तता भारत को बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और इतिहास को प्रतिबिंबित करने वाली नीतियां बनाने की अनुमति देती है।
वैश्विक नेता के रूप में भारत की भूमिका
2023 में भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने बहुलवाद और लोकतंत्र पर ज़ोर देते हुए, वैश्विक दक्षिण की आवाज़ के रूप में भारत की स्थिति पर ज़ोर दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर, विरासत में मिले पूर्वाग्रहों के बजाय हित-आधारित साझेदारियों की वकालत करते हैं, जो कई उभरती शक्तियों द्वारा अपने भू-राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देने के साथ प्रतिध्वनित होता है।
सामरिक स्वायत्तता की चुनौतियाँ
- अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्रों में वैश्विक परस्पर निर्भरता।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण और आर्थिक कमजोरियों जैसी घरेलू चुनौतियाँ।
- आर्थिक मजबूती, तकनीकी क्षमता और राजनीतिक सामंजस्य की आवश्यकता।
- साइबर, एआई और अंतरिक्ष क्षेत्रों में स्वायत्तता का विस्तार करना, डेटा संप्रभुता और डिजिटल अवसंरचना सुरक्षा सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
सामरिक स्वायत्तता का अर्थ अलगाव नहीं, बल्कि लचीलापन है। इसके लिए भारत को वैश्विक स्तर पर सक्रिय रहना होगा, साझेदारियों में संतुलन बनाते हुए अपने हितों की रक्षा करनी होगी। भारत का उदय सभ्यतागत और बहुलवादी है, जो बदलती वैश्विक व्यवस्था में अपनी स्थिति पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। सामरिक स्वायत्तता में वैश्विक चुनौतियों का बिना दिशा खोए, स्पष्टता और आत्मविश्वास के साथ डटे रहना शामिल है।
यह लेख संसद सदस्य एवं विदेश मामलों पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर द्वारा लिखा गया है।