सिंधु जल संधि (IWT) और इसका वर्तमान संदर्भ
भारत ने सिंधु जल संधि (IWT) की समीक्षा, संशोधन और पुनर्वार्ता का अनुरोध किया था, जो 65 वर्षों से भारत-पाकिस्तान तनाव के बावजूद कायम है। हालाँकि, पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने इस संधि को निलंबित कर दिया। आतंकवाद और कश्मीर विवाद के साथ-साथ, सीमा पार नदी जल बंटवारे का मुद्दा भारत-पाकिस्तान संबंधों का एक केंद्रीय पहलू बनने की संभावना है।
उत्तम कुमार सिन्हा का विश्लेषण
- मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ फेलो उत्तम कुमार सिन्हा ने अपनी नई पुस्तक ट्रायल बाय वॉटर (2025) में भारत-पाकिस्तान संबंधों के नजरिए से IWT का आकलन किया है।
- उनकी पुरानी किताब, इंडस बेसिन अनइंटरप्टेड (2021) ने इस क्षेत्र के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में सिंधु बेसिन की भूमिका का ऐतिहासिक विवरण प्रदान किया था।
जल विभाजन और संधि के पीछे की मंशा
- सिंधु जल संधि ने सिंधु प्रणाली की छह नदियों से लगभग 80% जल पाकिस्तान को आवंटित किया, जो कि परिमाणात्मक आकलन के बजाय भौगोलिक और प्राकृतिक नदी मार्गों पर आधारित था।
- जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की प्रेरणाओं में पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना और विकासात्मक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल था।
- पाकिस्तान की रुचि ऊपरी तटवर्ती राज्यों की रणनीतिक बढ़त से उत्पन्न हुई, जो नदी के प्रवाह पर अपनी निर्भरता से अवगत थे।
चुनौतियाँ और रणनीतिक गतिशीलता
- अनुकूल 80:20 जल वितरण के बावजूद, पाकिस्तान ने इसका जश्न नहीं मनाया है, क्योंकि उसे एहसास है कि सामरिक संतुलन भारत के पक्ष में है।
- भारत ने पश्चिमी नदियों पर अपने अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है, लेकिन पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में भारतीय परियोजनाओं में देरी के लिए सिंधु जल संधि प्रावधानों का उपयोग किया है।
- नदी प्रवाह पर नियंत्रण की पाकिस्तान की इच्छा कश्मीर के संबंध में उसकी व्यापक महत्वाकांक्षाओं से जुड़ी हुई है।
संधि का अस्तित्व और प्रभाव
- सिंधु जल संधि ने चार युद्धों और कई तनावों का सामना किया है, जिसका श्रेय न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित करने और सूचना साझा करने की भारत की जिम्मेदारी को दिया जाता है।
- ऊपरी तटवर्ती राज्य होने के नाते भारत का निचले इलाकों पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।
वर्तमान गतिरोध और भविष्य के निहितार्थ
- भारत द्वारा संधि पर द्विपक्षीय पुनर्वार्ता पर जोर दिए जाने की संभावना है, जिसमें विश्व बैंक जैसे तीसरे पक्ष की भागीदारी को शामिल नहीं किया जाएगा।
- पाकिस्तान अपनी लाभप्रद स्थिति को समझते हुए संशोधनों का विरोध कर सकता है।
- भारत द्वारा संधि को स्थगित करने का उद्देश्य अपने अधिकारों का पूर्ण प्रयोग करना तथा जम्मू-कश्मीर में जल परियोजनाओं को आगे बढ़ाना है।
- ऊपरी तटवर्ती स्थिति का भारत का रणनीतिक लाभ पाकिस्तान पर सीमापार आतंकवाद पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए दबाव डाल सकता है।