परमाणु संकट के घटनाक्रम
जून 2025 में ईरान के फोर्डो स्थित परमाणु स्थल पर अमेरिकी हमले के बाद एक नया परमाणु संकट उत्पन्न हो गया है। 28 अगस्त, 2025 को, E3 (ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी) ने तेहरान के उल्लंघन के कारण 2015 के परमाणु समझौते के "स्नैपबैक" खंड को लागू कर दिया।
- इस "स्नैपबैक" के परिणामस्वरूप ईरान के परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रमों से जुड़े व्यक्तियों को पुनः नामित करने, संवर्धन रोकने, हथियार हस्तांतरण नियंत्रण को कड़ा करने जैसे उपायों की बहाली हो सकती है।
- वैश्विक प्रतिक्रियाएं अलग-अलग हैं, ईरान ने इस कदम को अस्वीकार कर दिया है, वाशिंगटन इसे अप्रसार परीक्षण के रूप में देख रहा है, तथा यूरोप इसे बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं की परीक्षा मान रहा है।
वैश्विक और क्षेत्रीय निहितार्थ
विभिन्न देश और हितधारक प्रभावित होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- रूस और चीन : विलंब और लाभ उठाने की कोशिश।
- इजराइल और खाड़ी देश : चेतावनी समय और युद्ध जोखिम का आकलन।
- तेल आयातक और शिपिंग कंपनियां : कीमतों और बीमा का पुनर्मूल्यांकन।
- बैंक : जोखिम की गणना करना।
- भारत : क्षेत्रीय स्थिरता, होर्मुज जलडमरूमध्य से तेल प्रवाह तथा पश्चिम एशिया में आठ मिलियन भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित।
IAEA की भूमिका और चुनौतियाँ
ईरान की परमाणु गतिविधियों की पुष्टि करने में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की महत्वपूर्ण भूमिका है। ईरानी परमाणु संयंत्रों पर हमलों के बाद से, IAEA के कर्मचारी ईरान छोड़कर चले गए हैं, जिसके कारण तथ्यात्मक मापों की जगह अफ़वाहें फैलने लगी हैं।
- कूटनीति के लिए सत्यापन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वार्ता भय के बजाय आंकड़ों पर आधारित होती है।
- IAEA की पहुंच से बाजार में अस्थिरता शांत हो सकती है और ईरान के नागरिक कार्यक्रम के दावे को बल मिल सकता है।
- तेहरान की आपत्तियां संप्रभुता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर आधारित हैं, उसे डर है कि निरीक्षण से लक्षित हमले हो सकते हैं।
भारत की सामरिक भूमिका
भारत अपनी स्थिति का लाभ उठाकर मध्यस्थता कर सकता है तथा कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन कर सकता है।
- IAEA बोर्ड और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य के रूप में, भारत IAEA तक पहुंच बहाल करने की वकालत कर सकता है।
- भारत की IAEA प्रमाणित तारापुर सुविधा नमूना विश्लेषण में सहायता कर सकती है।
- भारत का समर्थन कूटनीति की ओर गति को मोड़ने में मदद कर सकता है, जिससे सैन्य वृद्धि का जोखिम कम हो सकता है।
आगे का रास्ता
कूटनीति की संभावनाएं कम होती जा रही हैं, क्योंकि ईरान ने बुशहर में निगरानी के लिए IAEA निरीक्षकों को आने की अनुमति देकर एक छोटा सा रास्ता दिखाया है।
- IAEA और ईरान के बीच 9 सितंबर, 2025 को काहिरा में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
- सत्यापन प्रयासों के प्रति भारत का समर्थन पश्चिम एशिया में उसके हितों के अनुरूप है, जो उसे एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में चिह्नित करता है।
- जोर इस बात पर है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का भविष्य "अनुमानों के बजाय गीगर काउंटरों" द्वारा तय किया जाए।