सारंड वन पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड सरकार को सारंड में एक नए वन्यजीव अभयारण्य को अधिसूचित करने का निर्देश दिया है, जिसमें जैव विविधता के केंद्र के रूप में इसके महत्व पर जोर दिया गया है और अवैध खनन के पिछले मुद्दों का समाधान किया गया है।
पृष्ठभूमि और कानूनी कार्यवाही
- सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के जुलाई 2022 के फैसले के अनुपालन के लिए दायर याचिका का जवाब है, जिसमें सारंड/सासंगदा अभयारण्य में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग की गई थी।
- NGT ने पहले सारंड को उत्तम साल वनों का भंडार माना था, लेकिन उसे आधिकारिक तौर पर खेल अभयारण्य घोषित किए जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।
- NGT की सिफारिशों के बावजूद झारखंड ने किसी भी अभयारण्य को अधिसूचित नहीं किया, जिसके कारण आगे कानूनी कार्रवाई की गई।
- 10 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड को 314.68 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने के लिए एक वचनबद्धता प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
- बाद में झारखंड सरकार ने सामुदायिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक छोटे क्षेत्र का प्रस्ताव रखा, जिसके कारण आगे की सुनवाई हुई।
सारंड का पारिस्थितिक महत्व
- सारंड का क्षेत्रफल 856 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 816 वर्ग किलोमीटर आरक्षित तथा शेष संरक्षित वन है।
- यह क्षेत्र अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है, जिसमें हाथी, मृग, भालू और कई हाथी गलियारे हैं।
- वैध और अवैध दोनों प्रकार के खनन ने आवास क्षरण और जैव विविधता में गिरावट में योगदान दिया है।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान के अध्ययन से पता चलता है कि खनन निकटता और प्रजातियों की समृद्धि के बीच नकारात्मक संबंध है।
झारखंड सरकार का रुख
- हेमंत सोरेन सरकार अभयारण्य घोषणा का समर्थन करती है, लेकिन आदिवासी और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर बल देती है।
- सारंड में भारत के लौह अयस्क भंडार का 26% हिस्सा है, और सरकार खनिज राजस्व के महत्व पर जोर देती है।
- ऐसी चिंताएं हैं कि अभयारण्य का दर्जा स्थानीय निर्वाह गतिविधियों को आपराधिक बना सकता है, जो वन अधिकार अधिनियम के विपरीत है।
खनन हित और कानूनी विवाद
- इस क्षेत्र में सक्रिय खदानें बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का उत्पादन करती हैं, जो भारत के वार्षिक उत्पादन में 5% का योगदान देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अभयारण्य अधिसूचना से मौजूदा खनन पट्टे प्रभावित नहीं होंगे।
- इस क्षेत्र में अवैध खनन एक लम्बे समय से जारी मुद्दा रहा है, शाह आयोग ने भी व्यापक स्तर पर अवैध खनन की रिपोर्ट दी है।
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक स्थायी खनन योजना लागू की है, जिसमें खनन के लिए 'गो' और 'नो-गो' क्षेत्र निर्धारित किए गए हैं।