जलवायु परिवर्तन की लागत और प्रभाव
जलवायु परिवर्तन पर व्यापक निष्क्रियता की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है, जिससे वैश्विक स्तर पर अरबों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
वैश्विक प्रभाव
- पिछले तीन दशकों में, चरम मौसम की घटनाओं ने 3 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित किया है, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 40% है ।
- ये घटनाएँ भारत सहित 11 देशों में घटित हुईं, जिनमें गर्म लहरें, तूफान और बाढ़ शामिल थीं।
जलवायु जोखिम सूचकांक 2026
- बर्लिन स्थित संगठन जर्मनवाच द्वारा तैयार किया गया यह सूचकांक 1995 से 2024 तक की अवधि को कवर करता है।
- रिकार्डों के अनुसार 9,300 चरम मौसम की घटनाएं हुईं, जिनमें 830,000 मौतें हुईं और 4.5 ट्रिलियन डॉलर की प्रत्यक्ष क्षति हुई (मुद्रास्फीति के लिए समायोजित)।
- सबसे अधिक प्रभावित देशों में डोमिनिका, म्यांमार और होंडुरास शामिल हैं।
भारत की स्थिति
- जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत नौवें स्थान पर है।
- 30 वर्षों में भारत ने लगभग 430 चरम मौसम घटनाओं का अनुभव किया।
- इससे 1.3 बिलियन लोग प्रभावित हुए, 80,000 मौतें हुईं और लगभग 170 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
चुनौतियाँ और अवलोकन
- हैती, फिलीपींस और भारत जैसे देशों को अक्सर मौसम संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- ये राष्ट्र इतनी नियमितता से गंभीर घटनाओं का सामना करते हैं कि अगली घटना से पहले उनसे उबरना मुश्किल से ही संभव हो पाता है।
- सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से कोई भी उच्च आय वर्ग का हिस्सा नहीं है।
निष्कर्ष
- 2026 का सूचकांक उत्सर्जन अंतराल को पाटने के प्रयासों को तीव्र करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।