चीन के दुर्लभ मृदा निर्यात नियंत्रण और वैश्विक प्रतिक्रिया
चीन द्वारा दुर्लभ मृदा खनिजों पर निर्यात नियंत्रण को एक वर्ष के लिए स्थगित करने का निर्णय वैश्विक उपयोगकर्ताओं को केवल अस्थायी राहत प्रदान करता है, क्योंकि ये तत्व ऑटोमोटिव, रोबोटिक्स और उद्योग जैसे क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस रोक को देशों के लिए एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है ताकि वे चीन द्वारा संभावित रूप से अपने व्यापार प्रतिबंधों को फिर से शुरू करने से पहले अपनी रणनीति पुनः बना सकें।
जापान का अनुभव और प्रतिक्रिया
- घटना की पृष्ठभूमि:
2010 में, एक चीनी मछली पकड़ने वाली नाव और जापानी तट रक्षक जहाजों के बीच हुई टक्कर के कारण जापान को दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर अस्थायी रूप से चीन द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिससे जापान के ऑटोमोबाइल उद्योग में खलबली मच गई थी, जो इन खनिजों पर काफी हद तक निर्भर था। - आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन:
जापान, जो उस समय अपने दुर्लभ मृदा आयात के लिए 90% चीन पर निर्भर था, ने अपने स्रोतों में विविधता लाकर, भण्डारण, पुनर्चक्रण और वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों में निवेश करके प्रतिक्रिया व्यक्त की।- ऑस्ट्रेलिया की लिनास रेयर अर्थ्स जैसी गैर-चीनी परियोजनाओं में निवेश से नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
- जापान की चीनी दुर्लभ मृदाओं पर निर्भरता 60% से कम हो गई है, तथा इस वर्ष इसे और घटाकर 50% से कम करने का लक्ष्य है।
- रणनीतिक उपाय:
2010 की घटना के बाद, जापान ने अपनी दुर्लभ मृदा आपूर्ति श्रृंखला की लचीलापन बढ़ाने के लिए 100 बिलियन जापानी येन का अनुपूरक बजट आवंटित किया, जिससे तब से उसकी दुर्लभ मृदा खपत में आधे से भी अधिक की कमी आई है।
चुनौतियाँ और रणनीतिक अंतर्दृष्टि
- चीन विश्व के 70% दुर्लभ मृदा खनिजों का उत्पादन करता है तथा वैश्विक उत्पादन का लगभग 90% प्रसंस्करण करता है, जिससे महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं पर उसकी पकड़ का पता चलता है।
- जापान का अनुभव एकल-देश आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने के लिए सक्रिय नीति-निर्माण और विविधीकरण के महत्व को उजागर करता है।
अन्य राष्ट्रों के लिए सबक
- देशों को विशिष्ट देशों पर अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं में भेद्यता आकलन करना चाहिए।
- रणनीतिक साझेदारी और विविधीकरण महत्वपूर्ण बने हुए हैं, जिसका उदाहरण जापान का मजबूत बहुपक्षीय दृष्टिकोण है।
भारत की स्थिति और संभावनाएँ
- भारत में दुर्लभ मृदा की सीमित घरेलू खपत, चीन के प्रतिबंधों के तात्कालिक प्रभाव को कम करती है, क्योंकि हाल के वर्षों में चीन से दुर्लभ मृदा का आयात, भारत के कुल आयात का 65% रहा है।
- भारत अपने दुर्लभ मृदा निष्कर्षण उपक्रमों का विस्तार कर रहा है, जिसमें अंडमान सागर में समुद्री ब्लॉकों की खोज भी शामिल है, तथा विशाखापत्तनम और भोपाल में दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक पार्कों की योजना भी शामिल है।
वैश्विक रुझान
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
अमेरिका दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण क्षमताओं को पुनर्जीवित कर रहा है, तथा चीन पर निर्भरता कम करने के लिए गहरे समुद्र में धातुओं का भण्डारण करने की पहल कर रहा है। - यूरोपीय संघ:
यूरोपीय संघ चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए घरेलू क्षमताओं को विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें सोल्वे जैसी कंपनियां प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।