वैश्विक परमाणु व्यवस्था: चुनौतियाँ और विरोधाभास
वैश्विक परमाणु व्यवस्था, कई उपलब्धियों के बावजूद, वर्तमान में भारी दबाव का सामना कर रही है। हालाँकि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी के बाद से किसी भी परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया है, फिर भी भू-राजनीतिक तनाव और हालिया घटनाक्रमों के कारण खतरा बना हुआ है।
परमाणु निरस्त्रीकरण में प्रमुख उपलब्धियाँ
- वैश्विक परमाणु शस्त्रागार 1970 के दशक के अंत में 65,000 के शिखर से घटकर आज 12,500 से भी कम रह गया है।
- परमाणु-सशस्त्र राज्यों की संख्या अभी भी नौ है, जबकि 1960 के दशक में ऐसी चिंता व्यक्त की गई थी कि 1980 तक यह संख्या कम से कम दो दर्जन तक बढ़ सकती है।
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के नेतृत्व में अमेरिका के प्रयासों से बातचीत की गई थी, हालांकि यह अभी तक लागू नहीं हुई है।
वर्तमान चुनौतियाँ और विकास
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हालिया घोषणाओं से परमाणु परीक्षण पुनः शुरू करने की योजना का संकेत मिलता है, जिससे वैश्विक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध व्यवस्था में संभावित रूप से अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- चीन, रूस और अमेरिका सक्रिय रूप से नए परमाणु हथियारों का डिजाइन तैयार कर रहे हैं, हाल ही में रूस ने परमाणु ऊर्जा चालित मिसाइलों और टॉरपीडो का परीक्षण किया है।
- अमेरिका और रूस 1990 के दशक से विस्फोटक परमाणु परीक्षणों से बचते रहे हैं, लेकिन विभिन्न कार्यक्रमों के तहत गैर-विस्फोटक परीक्षण जारी रखे हुए हैं।
- CTBT के तहत राज्यों को परमाणु हथियार परीक्षण विस्फोट नहीं करने की आवश्यकता होती है; हालांकि, कुछ राज्यों ने कथित तौर पर कम-क्षमता वाले, गैर-विस्फोटक परीक्षण किए हैं।
संभावित परिणाम
- विस्फोटक परमाणु परीक्षण पुनः शुरू करने से नए सिरे से हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है तथा परमाणु अप्रसार संधि (NPT) द्वारा स्थापित अप्रसार व्यवस्था कमजोर हो सकती है।
- परीक्षणों को पुनः शुरू करने से चीन को नए डिजाइनों को प्रमाणित करने का अवसर मिलेगा, जिससे संभवतः उसकी परमाणु क्षमताओं में तेजी आएगी।
- भारत, जो 1998 से स्वैच्छिक रोक का पालन कर रहा है, ऐसे घटनाक्रमों के जवाब में अपने परमाणु डिजाइनों को मान्य करने के लिए परीक्षण पुनः शुरू कर सकता है।
- यदि विस्फोटक परीक्षण पुनः शुरू होता है तो चीन के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े पाकिस्तान के भी ऐसा ही करने की संभावना है।
- नवीकरण की संभावनाओं के बिना 2026 में नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (न्यू स्टार्ट) की समाप्ति से स्थिति और जटिल हो गई है।
भविष्य के विचार
20वीं सदी की भू-राजनीति से आकार लेती वैश्विक परमाणु व्यवस्था को 21वीं सदी की खंडित भू-राजनीति के साथ तालमेल बिठाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर रोक भी बरकरार रखनी होगी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने परमाणु खतरों के प्रति आगाह किया है और देशों से ऐसे कार्यों से बचने का आग्रह किया है जिनसे विनाशकारी गलत अनुमान या तनाव बढ़ सकता है।
समकालीन चुनौतियों का समाधान करने तथा वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली नई परमाणु व्यवस्था की आवश्यकता स्पष्ट है, क्योंकि आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में पुराने प्रतिमानों पर निर्भरता पर्याप्त नहीं हो सकती है।