वैश्विक कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन
ब्राजील में COP 30 के दौरान जारी एक अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 2025 के अंत तक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।
मुख्य निष्कर्ष
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2024 तक उत्सर्जन में सबसे अधिक 1.9% की वृद्धि दर्ज की।
- भारत के उत्सर्जन में 1.4% की वृद्धि हुई, जबकि चीन और यूरोपीय संघ दोनों में यह वृद्धि 0.4% रही।
उत्सर्जन रुझान
- नवीकरणीय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण भारत और चीन से उत्सर्जन में धीमी वृद्धि हुई।
- भारत के विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन में 2024 की तुलना में वर्ष की पहली छमाही में गिरावट आई है।
- भारत में GHG उत्सर्जन की औसत वृद्धि 6.4% (2004-2015) से घटकर 3.6% (2015-2024) हो गई।
- अमेरिका ने लगभग दो दशक से जारी उत्सर्जन में गिरावट की प्रवृत्ति को उलट दिया है।
वैश्विक कार्बन परियोजना रिपोर्ट
- रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि वर्तमान डीकार्बोनाइजेशन प्रयास वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों को कम करने के लिए अपर्याप्त हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा ने बिजली के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयले को पीछे छोड़ दिया है, फिर भी उच्च ऊर्जा मांग के कारण जीवाश्म ईंधन का उपयोग जारी है।
भविष्य के अनुमान और चेतावनियाँ
- वैश्विक उत्सर्जन 2030 तक स्थिर हो सकता है और इसमें गिरावट आ सकती है।
- यह गिरावट पेरिस जलवायु समझौते के 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है।
- वर्तमान उत्सर्जन दर पर, विश्व के सामने पेरिस संधि की सीमा तक कार्बन बजट के समाप्त होने का खतरा है।
- एक अन्य रिपोर्ट में 2.6 डिग्री तापमान वृद्धि की ओर संकेत दिया गया है।
COP 30 में कार्रवाई का आह्वान
COP 30 के वार्ताकारों से स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग के लिए एक रोडमैप तैयार करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए निवेश बढ़ाने का आग्रह किया गया है।