POSH अधिनियम और उसकी चुनौतियों का अवलोकन
यह लेख चंडीगढ़ में हाल ही में हुए एक मामले पर चर्चा करता है जिसमें एक कॉलेज प्रोफ़ेसर को कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 , जिसे आमतौर पर POSH अधिनियम के नाम से जाना जाता है, के तहत बर्खास्त कर दिया गया था। यह मामला इस अधिनियम के कार्यान्वयन में सफलताओं और वर्तमान चुनौतियों, दोनों को उजागर करता है।
POSH अधिनियम से जुड़े प्रमुख मुद्दे
- सहमति बनाम सूचित सहमति:
अधिनियम में "सहमति" का उल्लेख तो किया गया है, लेकिन "सूचित सहमति" का उल्लेख नहीं किया गया है, जिसे हेरफेर या शक्ति असंतुलन के कारण प्रभावित किया जा सकता है। - भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न:
यह अधिनियम भावनात्मक हेरफेर या धोखेबाज रिश्तों से उत्पन्न उत्पीड़न का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं करता है। - सीमा अवधि:
शिकायत दर्ज करने के लिए तीन महीने की समय-सीमा अक्सर पीड़ितों के लिए उत्पीड़न को पहचानने और रिपोर्ट करने के लिए अपर्याप्त होती है। - शब्दावली और भाषा:
"अभियुक्त" के स्थान पर "प्रतिवादी" शब्द का प्रयोग करने से अपराध की गंभीरता कम हो जाती है। - सबूत का बोझ:
अस्पष्ट परिभाषाएं साबित करने का भार पीड़ितों पर डाल देती हैं, जिन्हें प्रायः अनुत्तरदायी या अपर्याप्त संस्थागत संरचनाओं से निपटना पड़ता है। - अंतर-संस्थागत शिकायतें:
अधिनियम में कई संस्थानों में फैले कदाचार का समाधान करने के लिए तंत्र का अभाव है, जिससे बार-बार अपराध करने वालों को बिना रोक-टोक के छोड़ दिया जाता है। - तकनीकी चुनौतियाँ:
डिजिटल साक्ष्य और संचार का प्रबंधन करने के मामले में यह अधिनियम पुराना हो चुका है, जिसके लिए समिति के सदस्यों के लिए अद्यतन प्रोटोकॉल और प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
सिफारिशें
- स्पष्ट परिभाषाएँ और प्रोटोकॉल शामिल करना, विशेष रूप से सूचित सहमति और भावनात्मक उत्पीड़न के संबंध में।
- पीड़ितों को अपने अनुभवों को प्रस्तुत करने और रिपोर्ट करने के लिए आवश्यक समय प्रदान करने हेतु शिकायत दर्ज करने की अवधि को तीन महीने से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
- उत्पीड़न की घटनाओं की गंभीरता को दर्शाने के लिए भाषा और परिभाषाओं को अद्यतन करना।
- डिजिटल साक्ष्य का प्रबंधन करने के लिए दिशा-निर्देशों के साथ अधिनियम को मजबूत बनाना तथा समिति के सदस्यों के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान करना।
POSH अधिनियम जब लागू किया गया था तो यह एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन कार्यस्थल पर उत्पीड़न से प्रभावी ढंग से सुरक्षा प्रदान करने तथा न्याय प्रदान करने के लिए इसमें पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है।