पॉश अधिनियम और महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 सितंबर, 2025 को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, जिसे आमतौर पर POSH अधिनियम के रूप में जाना जाता है, के तहत महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षा से वंचित करने को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका का विवरण
- याचिका में तर्क दिया गया कि राजनीति में महिलाओं को POSH अधिनियम के तहत सुरक्षा से बाहर रखने में तर्कसंगत या समझदारीपूर्ण अंतर का अभाव है।
- इसमें सुझाव दिया गया कि 'कार्यस्थल' और 'नियोक्ता' की परिभाषाओं का विस्तार कर उन्हें राजनीतिक संदर्भों में शामिल किया जाना चाहिए।
- याचिका में प्रभावी कानूनी उपायों के अभाव के कारण महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं, विशेषकर जमीनी स्तर पर, चुनाव प्रचार और पार्टी कार्य के दौरान उनकी असुरक्षित स्थिति पर प्रकाश डाला गया।
सर्वोच्च न्यायालय का तर्क
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया, यह संकेत देते हुए कि इसे स्वीकार करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा।
याचिका की मांग
- याचिका में मांग की गई है कि राजनीतिक दलों को राजनीतिक कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए POSH अधिनियम की प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।
- इसमें यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए विशेष रूप से शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना का आह्वान किया गया।