दिल्ली में प्रदूषण संकट
1990 के दशक के उत्तरार्ध से ही वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन दिल्ली की ज़हरीली हवा में एक बड़ा योगदानकर्ता रहा है। प्रदूषण कम करने के प्रयासों के बावजूद, निजी वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
नीतिगत प्रतिक्रिया और चुनौतियाँ
- 2001 में, सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक परिवहन के लिए CNG को अनिवार्य कर दिया। हालाँकि, निजी वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण यह लाभ ज़्यादा समय तक नहीं चल पाया।
- प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में हाल ही में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में दिए गए निर्देशों में निजी वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने तथा इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- दिल्ली के निवासियों की गतिशीलता संबंधी आवश्यकताओं को वायु शुद्धिकरण के लक्ष्य के साथ संरेखित करने की तत्काल आवश्यकता है।
सार्वजनिक परिवहन और शहरी चुनौतियाँ
- दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन का विस्तार शहर के विकास के अनुरूप पर्याप्त रूप से नहीं हुआ है।
- मेट्रो नेटवर्क लगभग 400 किलोमीटर तक फैला हुआ है, लेकिन लास्ट माइल कनेक्टिविटी की समस्या इसे निजी परिवहन की तुलना में कम आकर्षक बनाती है।
- दिल्ली का बस बेड़ा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1998 में निर्धारित 10,000 बसों के लक्ष्य से कम है।
सुधार के लिए सिफारिशें
- पर्यावरण अनुकूल निजी परिवहन प्रथाओं, जैसे कारपूलिंग, को प्रोत्साहित करना।
- निजी वाहनों पर निर्भरता कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना को बढ़ाना।
- सरकार को जनता के सहयोग को प्रेरित करने के लिए धूल प्रदूषण में कमी जैसी पहलों के माध्यम से प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिए।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों के लिए सरकार और जनता के बीच सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें तात्कालिक कार्रवाई और दीर्घकालिक रणनीतियों दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।