खेतों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी
पर्यावरण मंत्रालय ने संसद को बताया कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं 2022 की तुलना में 2025 में 90% तक कम हो गईं। यह खेतों में धान के अवशेषों को जलाने की प्रथा को संदर्भित करता है, जो गेहूं की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए धान के अवशेषों को साफ करने की एक पारंपरिक विधि है।
वायु प्रदूषण पर प्रभाव
अक्टूबर-नवंबर में वायु प्रदूषण में अचानक वृद्धि का कारण पराली जलाना बताया गया है, जिससे विशेष रूप से दिल्ली और आसपास के क्षेत्र प्रभावित होते हैं। इस समस्या को कम करने के प्रयासों में दंडात्मक उपायों और प्रोत्साहनों का संयोजन शामिल है।
- पराली जलाने में लिप्त किसानों पर जुर्माना।
- सब्सिडी पर कृषि उपकरण उपलब्ध कराना, जिसमें कंबाइंड हार्वेस्टर और ट्रैक्टर शामिल हैं।
- किसानों को पराली इकट्ठा करने और उसे थर्मल पावर प्लांटों को को-फायरिंग हेतु बेचने के लिए प्रोत्साहन देना।
उपायों की प्रभावशीलता
इन उपायों से दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर पराली जलाने के प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सीमित है। सटीक आकलन के लिए प्रदूषकों की रासायनिक संरचना को समझने हेतु मास स्पेक्ट्रोग्राफ विश्लेषण आवश्यक है, जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इसलिए, सरकार सक्रिय आग की गिनती के लिए उपग्रह डेटा पर निर्भर करती है।
उपग्रह डेटा का विश्लेषण
हालांकि 2020 से आग लगने की घटनाओं में कमी देखी गई है, इसे एक क्षणिक जीत माना जाता है। विभिन्न उपग्रह छवियों का उपयोग करके 'जले हुए क्षेत्र' का विश्लेषण करने पर:
- वास्तविक रूप से जली हुई भूमि में केवल 30% की कमी आई: 2022 में 31,500 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2025 में 19,700 वर्ग किलोमीटर रह गई।
- मेटियोसैट उपग्रह के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि खेतों में पराली जलाने की घटनाएं शाम के समय होने लगी हैं ताकि उनका पता न चल सके।
चुनौतियाँ और सिफ़ारिशें
विभिन्न उपग्रहों की रिज़ॉल्यूशन क्षमता अलग-अलग होती है, जिससे आग की सही संख्या का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय को सटीक रुझान विश्लेषण के लिए 'जले हुए क्षेत्र' का पता लगाने का निर्देश दिया था। हालांकि, वर्षवार जले हुए क्षेत्र के अनुमान सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, जिससे प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी दावों पर जनता का भरोसा खतरे में पड़ गया है।
पर्यावरण मंत्रालय को जनता का विश्वास बनाए रखने और वायु प्रदूषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए इन आंकड़ों में मौजूद विसंगतियों को दूर करना होगा।