दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) संशोधन विधेयक, 2025 पर संसदीय समिति की सिफारिशें
एक संसदीय प्रवर समिति ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) संशोधन विधेयक, 2025 के संबंध में कई सिफारिशें पेश की हैं। इन सिफारिशों का उद्देश्य दिवाला प्रक्रिया को सरल बनाना और वर्तमान ढांचे के भीतर विभिन्न चुनौतियों का समाधान करना है।
मुख्य सुझाव
- अपील के लिए सख्त समयसीमा:
- राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के लिए किसी अपील का निपटान करने हेतु तीन महीने की "स्पष्ट वैधानिक समय-सीमा" लागू की जाए।
- इस बात पर जोर दिया गया कि अपीलीय प्रक्रिया में देरी से दिवाला समाधान प्रक्रिया की दक्षता और निश्चितता कमजोर हो सकती है।
- सीमा पार दिवालियापन ढांचा:
- सीमा पार दिवालियापन ढांचे के बुनियादी सिद्धांतों को वर्तमान कानून में शामिल किया जाए।
- इस ढांचे को डिजाइन करते समय भारत की सामाजिक-आर्थिक, न्यायिक और संस्थागत वास्तविकताओं पर विचार किया जाए, और इसे संयुक्त राष्ट्र (UN) के एक मॉडल कानून के अनुरूप बनाया जाए।
- समूह दिवालियापन ढांचा:
- प्रमोटर-संचालित मुकदमेबाजी और संबंधित पक्षों के प्रभाव जैसे घरेलू कारकों को ध्यान में रखते हुए एक 'ग्रुप इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क' विकसित किया जाए।
- विभिन्न संस्थाओं के बीच दावों की अंतर्निहित जटिलता को स्वीकार किया जाए।
- कुछ अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना:
- संकटग्रस्त फर्मों को तेजी से बचाने के लिए कुछ अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रस्ताव दिया गया है।
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय से इन सिफारिशों के आधार पर विधेयक को संशोधित करने और संसद की मंजूरी लेने की उम्मीद है।