सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों द्वारा आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए | Current Affairs | Vision IAS
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सुप्रीम कोर्ट ने सभी शैक्षणिक संस्थानों (जैसे- स्कूल, कोचिंग संस्थान, आदि) के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 141 के तहत 15 अंतरिम दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश छात्रों की आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते संकट से निपटने के लिए सुकदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में जारी किए गए हैं। 

  • न्यायालय ने कहा कि भारत के युवाओं में व्याप्त यह संकट देश के एजुकेशनल इकोसिस्टम में गहरी “संरचनात्मक अस्वस्थता” की ओर इशारा करता है। 
  • NCRB के अनुसार, 2022 में भारत में 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्याएं की थी, जो सभी तरह की आत्महत्याओं का 7.6% है। इनमें से 2,200 से अधिक सीधे तौर पर परीक्षा में असफलता से जुड़ी थीं। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी प्रमुख न्यायिक दिशा-निर्देश (विधायी ढांचा विकसित होने तक बाध्यकारी)

  • शैक्षणिक संस्थानों में अनिवार्य मानसिक स्वास्थ्य नीति: यह उम्मीद, मनोदर्पण और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति जैसे राष्ट्रीय ढांचे के अनुरूप है। 
  • मानसिक स्वास्थ्य काउंसलर्स की नियुक्ति: 100 या अधिक छात्रों वाले संस्थानों के लिए कम-से-कम एक योग्य काउंसलर होना चाहिए।  
  • ये परफॉरमेंस, पब्लिक शेमिंग करने और कठिन शैक्षणिक लक्ष्यों के आधार पर बैच को अलग करने पर प्रतिबंध लगाते हैं। 
  • हेल्पलाइन नंबर (टेली-मानस सहित) को परिसरों और छात्रावासों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए। 
  • सभी कर्मचारियों को संकट प्रतिक्रिया और चेतावनी संकेतों की पहचान पर वर्ष में दो बार मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। 
  • SC/ST/OBC/EWS, LGBTQ+ और दिव्यांग छात्रों के लिए समावेशी व गैर-भेदभावपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य प्रथाओं को अपनाना होगा। 
  • संस्थानों द्वारा यौन उत्पीड़न, रैगिंग और पहचान आधारित भेदभाव के लिए गोपनीय रिपोर्टिंग प्रणाली स्थापित की जाएगी। साथ ही, प्रभावित छात्रों के लिए तत्काल मनोवैज्ञानिक सहायता सुनिश्चित करनी होगी। 
  • रुचि-आधारित करियर परामर्श और पाठ्येतर गतिविधियों को बढ़ावा देकर परीक्षा-केंद्रित तनाव को कम करने का प्रयास करना होगा।  

मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व के प्रति कानूनी मान्यता और नीतिगत प्रतिबद्धताएं  

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 प्रत्येक नागरिक को “मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच के अधिकार” की गारंटी देता है और उनकी गरिमा की रक्षा करता है। 
    • इस अधिनियम के तहत आत्महत्या के प्रयास को भी अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है तथा इसे अपराध की बजाय मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंता माना गया है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांग की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें मानसिक बीमारी को भी शामिल किया गया है। इससे मनोसामाजिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को कानूनी सुरक्षा और समानता प्राप्त हुई है। 
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानसिक स्वास्थ्य जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। 
    • जीवन के अधिकार का अर्थ केवल पशुवत अस्तित्व नहीं है, बल्कि यह सम्मान, स्वायत्तता और कल्याण से पूर्ण जीवन है। केस लॉ: शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ।
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