हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य (2025) मामले में तेलंगाना के 10 विधायकों से संबंधित अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में अध्यक्ष द्वारा की गई काफी देरी को गंभीरता से लिया है।
मामले से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
- कोर्ट ने इस संबंध में विधान सभा अध्यक्ष की निष्क्रियता की आलोचना की और संबंधित हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही, 31 जुलाई 2025 से तीन महीने के भीतर कार्यवाही को पूरा करने का निर्देश भी दिया।
- कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष को एक अधिकरण के रूप में कार्य करते हुए कार्यवाही को लंबा नहीं खींचना चाहिए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे "ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन मरीज मर गया" जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, इस विषय पर निर्णय लेने में देरी से संबंधित कानून के उद्देश्य भी विफल हो जाते हैं।
- कोर्ट ने संसद से अपील की है कि वह प्रावधानों पर पुनर्विचार करे तथा अयोग्यता संबंधी निर्णयों के लिए एक वैकल्पिक एवं स्वतंत्र व्यवस्था बनाने पर विचार करे। ऐसा इस कारण, क्योंकि इस विषय पर वर्तमान में हो रहे विलंब से दसवीं अनुसूची का उद्देश्य विफल हो रहा है।
अन्य संबंधित निर्णय
- किहोतो होलोहन बनाम जाचीलू वाद (1992): इस मामले में, कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष एक अधिकरण की तरह काम करता है और उसके अधिकार क्षेत्र संबंधी त्रुटियों के मामले में उसका निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होता है। अतः "क्विया टिमेट एक्शन" (निवारक निषेधाज्ञा) सिद्धांत के तहत निर्णय देने से पहले न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।
- कीशम मेघचंद्र सिंह वाद (2020): इसमें कोर्ट ने अध्यक्ष को यह निर्देश दिया कि वह अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर निर्णय करे।
- इसमें यह भी सुझाव दिया गया कि इस विषय पर त्वरित एवं निष्पक्ष निर्णय के लिए अध्यक्ष के स्थान पर एक स्वतंत्र अधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए।
सांसदों या विधायकों की अयोग्यता के बारे में
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