विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन ने "स्वच्छ" पर्वतीय वर्षा की धारणा को मिथक सिद्ध कर दिया है।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- विषाक्त भारी धातुएं: भारत में निचली स्तर की बादल-पट्टी (low-level clouds) भारी विषाक्त धातुओं से प्रदूषित पाई गई हैं।
- प्रमुख प्रदूषक: पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय क्षेत्र के वर्षा रहित बादलों में कैडमियम (Cd), कॉपर (Cu), जिंक (Zn), और क्रोमियम (Cr) पाए गए हैं।
- पूर्वी हिमालय में अधिक प्रदूषण: यहां 1.5 गुना अधिक प्रदूषण और 40–60% अधिक विषाक्त धातु भार पाया गया है।
- स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:
- बच्चों में वयस्कों की तुलना में 30% अधिक स्वास्थ्य जोखिम है।
- बादलों में घुला हुआ क्रोमियम कैंसरकारी बीमारियों का खतरा बढ़ाता है।
- प्रदूषण के प्रमुख कारण: पहाड़ी क्षेत्रों से वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, निकटवर्ती निचले इलाकों से औद्योगिक प्रदूषण, आदि।
भारी धातुएं और भारी धातु प्रदूषण के बारे में
- भारी धातुओं की विशेषताएं: इनका परमाणु भार 63.5 से 200.6 के बीच होता है और घनत्व 4000 किलोग्राम/ घन मीटर से अधिक होता है। उदाहरण के लिए- जिंक, कॉपर, कैडमियम, कोबाल्ट, आर्सेनिक, सीसा, क्रोमियम आदि।
- आवर्त सारणी में 50 से अधिक तत्व भारी धातुओं की श्रेणी में आते हैं, जिनमें लगभग 17 अत्यंत घातक मानी जाती हैं।
- उत्पत्ति: ये धातुएं प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की सतह और भूगर्भ में पाई जाती हैं, जो पृथ्वी के निर्माण काल से ही मौजूद हैं।
- प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारक: मानवजनित गतिविधियां, विशेषकर धातु-आधारित औद्योगिक क्रियाएं, जैसे:
- स्मेल्टिंग (धातु गलाना),
- खनन,
- फाउंड्री उद्योग,
- धातुओं का रिसाव (Leaching) आदि।
हिमालयी क्षेत्रों में प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए प्रमुख कदम
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