परिचय
मानवता की उत्पत्ति महासागर से जुड़ी हुई है, जो ऑक्सीजन पैदा करके, कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करके और जलवायु को नियंत्रित करके जीवन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महासागर एक प्रमुख कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है, और इसका स्वास्थ्य पृथ्वी के जलवायु विनियमन के लिए महत्वपूर्ण है।
वैश्विक महासागर शासन और चुनौतियाँ
ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान लक्ष्य
- 1982 में हस्ताक्षरित समुद्री कानून का उद्देश्य समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना था।
- वर्ष 2015 में अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एसडीजी 14 शामिल है, जो महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग पर केंद्रित है, जिसमें वर्ष 2030 तक 10 लक्ष्य हासिल किए जाने हैं।
अनेक प्रयासों के बावजूद, इन लक्ष्यों पर प्रगति अपर्याप्त रही है, जैसा कि 2017 और 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलनों में उजागर किया गया है।
वर्तमान स्थिति और चिंताएँ
- ओशनकेयर ने समुद्र की बदतर होती स्थिति और ठोस सरकारी कार्रवाई के अभाव की रिपोर्ट दी है।
- संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों में स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएं व्यक्त की जाती हैं, जिनका कोई कानूनी रूप से अनुपालन योग्य प्रावधान नहीं होता।
- जून में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में 170 से अधिक देश एक साथ आए और इसके परिणामस्वरूप एक राजनीतिक घोषणा-पत्र और एक नाइस महासागर कार्य योजना तैयार की गई।
प्रमुख संधियाँ और पहलें
- प्रयासों में राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) या उच्च सागर संधि का शीघ्र अनुसमर्थन और महासागरीय स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए वैश्विक प्लास्टिक संधि पर वार्ता को अंतिम रूप देना शामिल है।
- प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ा खतरा है, वैश्विक प्लास्टिक कचरे का 18-20% हर साल समुद्र में समा जाता है। अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो 2040 तक यह 37 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क ने 2030 तक 30% समुद्री क्षेत्र को समुद्री संरक्षित क्षेत्र के रूप में नामित करने का संकल्प लिया है।
तात्कालिकता और वित्त-पोषण संबंधी चुनौतियां
नाइस राजनीतिक घोषणा-पत्र में महासागरों की बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति का हल करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है। लगभग 2,000 वैज्ञानिकों ने समुद्री पारिस्थितिकी क्षरण से उत्पन्न अस्तित्वगत खतरे की चेतावनी दी है। हालाँकि, केवल संसाधन जुटाना अपर्याप्त है, महासागर संरक्षण के लिए 15.8 बिलियन डॉलर के वित्त-पोषण की कमी है, जो महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए संभवतः कम आंका गया है।
भारत की भूमिका और रणनीति
मंत्री जितेंद्र सिंह के प्रतिनिधित्व में भारत ने छह सूत्री महासागर संरक्षण योजना प्रस्तावित की, जिसमें समुद्री अनुसंधान, संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार, प्रदूषण कम करने और शासन में स्वदेशी ज्ञान को शामिल करने पर जोर दिया गया। भारत का विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र और समुद्र तट इसे वैश्विक महासागर शासन में एक प्रमुख भागीदार बनाते हैं, जिसका इसके आर्थिक और समुद्री सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
भारत को, एक समुद्री राष्ट्र के रूप में, अपने संरक्षित समुद्री राष्ट्रीय उद्यानों का विस्तार करना चाहिए और गंगा डेल्टा जैसे अवनायित क्षेत्रों को बहाल करने पर विचार करना चाहिए। प्रभावी संरक्षण के लिए स्थलीय और समुद्री प्रणालियों के अंतर्संबंध को मान्यता देने वाली एक पारिस्थितिक रणनीति आवश्यक है।