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तीव्र प्रक्रिया के उद्देश्य से IBC विधेयक सेलेक्ट पार्लियामेंट पैनल को भेजा गया | Current Affairs | Vision IAS

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तीव्र प्रक्रिया के उद्देश्य से IBC विधेयक सेलेक्ट पार्लियामेंट पैनल को भेजा गया

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दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) में संशोधन 

वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री ने IBC में महत्वपूर्ण संशोधन पेश किए, जो ऋणदाता द्वारा शुरू किए गए समाधान, सीमा-पार दिवालियापन और कॉर्पोरेट समूह दिवालियापन पर केंद्रित हैं। इन परिवर्तनों का उद्देश्य दिवालिया कंपनियों के समाधान में तेज़ी लाना और संकटग्रस्त संपत्तियों के मूल्य ह्रास को रोकना है। 

प्रमुख संशोधन और प्रस्ताव 

  • ऋणदाता-नेतृत्व समाधान ढांचा: 
    • यह बहुसंख्यक असंबद्ध वित्तीय लेनदारों और देनदारों को न्यायालय के बाहर की व्यवस्था के माध्यम से दिवालियापन का समाधान करने की अनुमति देता है। 
    • ऋणदाताओं की समिति को सशक्त बनाकर राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) के कार्यभार को कम किया गया है।
    • कॉर्पोरेट देनदारों के लिए 30 दिन की आपत्ति अवधि शुरू की गई। 
  • सीमा पार दिवालियापन:
    • ऐसी कार्यवाही के लिए एक समर्पित पीठ की नियुक्ति करते हुए, पालन करने योग्य नियमों के साथ एक बुनियादी संरचना का प्रस्ताव किया गया है। 
    • इससे तनावग्रस्त कंपनियों की विदेशी परिसंपत्तियों तक ऋणदाताओं की आसान पहुंच सुनिश्चित होती है। 
  • स्वैच्छिक समूह दिवालियापन ढांचा:
    • घरेलू कॉर्पोरेट समूह की संकटग्रस्त संस्थाओं के संयुक्त समाधान की सुविधा प्रदान करता है। 
    • इसमें समन्वित कार्यवाही और साझा दिवालियापन पेशेवरों के लिए प्रावधान शामिल हैं। 
  • समाधान में तेजी लाना:
    • NCLT को 14 दिनों के भीतर दिवालियापन मामलों को स्वीकार करने और 30 दिनों के भीतर समाधान योजनाओं को मंजूरी देने का आदेश दिया गया है।
  • सुरक्षित ऋणदाता समझौता:
    • ऋणदाता को केवल देनदार के साथ द्विपक्षीय वाणिज्यिक समझौते के साथ एक सुरक्षित लेनदार के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • अधिक दंड और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाएं: 
    • अनावश्यक मुकदमों के लिए बढ़े हुए दंड लागू करता है और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं के उपयोग को अनिवार्य बनाता है। 

अपेक्षित परिणाम और उद्योग प्रतिक्रियाएँ 

  • इन संशोधनों का उद्देश्य समाधान समय-सीमा में सुधार करना, ऋणदाताओं का विश्वास बढ़ाना तथा परिसंपत्ति मूल्य क्षरण को कम करना है। 
  • ये भारत की दिवालियापन व्यवस्था को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाते हैं, जिससे हितधारकों के लिए दक्षता और निश्चितता बढ़ती है। 
  • परिचालन प्रक्रियाओं में संभावित सुधार। 
  • समाधान योजना अनुमोदन के बाद क्लीन-स्लेट सिद्धांत को सुदृढ़ करना। 
  • Tags :
  • Insolvency and Bankruptcy Code (IBC)
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