अमेरिका में H-1B वीज़ा पर प्रतिबंध और चीन की K वीज़ा पहल
अवलोकन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीज़ा पर लगाए गए प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य उनके "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" (MAGA) समर्थक वर्ग को संतुष्ट करना है। इस फैसले का अमेरिकी तकनीकी क्षेत्र, वीज़ा आवेदकों और भारत जैसे देशों की प्रमुख आईटी कंपनियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके विपरीत, चीन को इस स्थिति से लाभ होने की संभावना है।
चीन का K वीज़ा
- चीन ने विदेशी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रतिभाओं के लिए K वीज़ा श्रेणी शुरू की है, जो 1 अक्टूबर से प्रभावी होगी।
- यह वीज़ा STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में डिग्री प्राप्त विदेशी युवाओं और शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिए है।
- K वीज़ा के लाभ:
- प्रविष्टि आवृत्ति और वैधता अवधि में अधिक लचीलापन।
- शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, संस्कृति, उद्यमिता और व्यापार में आदान-प्रदान सहित गतिविधियों के लिए विस्तारित दायरा।
- किसी स्थानीय उद्यम प्रायोजन की आवश्यकता नहीं है।
चीन के लिए निहितार्थ
- K वीज़ा चीन की अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करने की रणनीति के अनुरूप है।
- विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के प्रतिबंधात्मक उपाय चीन के लिए लाभकारी हैं, जिससे भू-राजनीतिक महत्व में संभावित बदलाव आ सकता है।
- चीन का लक्ष्य राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में स्वयं को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाशक्ति के रूप में स्थापित करना है।
चुनौतियाँ और अवसर
- संभावित बाधाओं में चीन की आर्थिक मंदी और युवाओं में उच्च बेरोजगारी शामिल है।
- हालाँकि, चीन की शिक्षा प्रणाली में सुधार हो रहा है तथा शीर्ष विश्वविद्यालय वैश्विक रैंकिंग में ऊपर आ रहे हैं।
- चीन AI, इलेक्ट्रिक वाहन और दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में अग्रणी है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
यह स्थिति भारतीय नीति निर्माताओं पर दबाव डालती है कि वे एशिया में भारत को अनुसंधान और शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों पर विचार करें।