अनुच्छेद 370 का निरसन और उसके बाद की स्थिति
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद राष्ट्रीय चर्चा मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर पर केंद्रित रही, लेकिन लद्दाख में भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं।
लद्दाख का अनोखा प्रक्षेप पथ
- 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होने के बाद लद्दाख में शुरुआत में आशा की किरण दिखी थी, लेकिन अब उसे व्यापक विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
- हिंसा की घटनाएं हुई हैं, जिनमें चार व्यक्तियों की मृत्यु हो गई तथा लगभग 50 लोग घायल हो गए।
- ये विरोध प्रदर्शन भूख हड़ताल और केंद्र सरकार की कार्रवाइयों से असंतोष के कारण हुए।
सरकारी कार्य और वादे
- केंद्र सरकार ने लद्दाख की सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और भाषाई विरासत की रक्षा करने का वादा किया था।
- हाल ही में जारी अधिसूचनाओं में सरकारी नौकरियों के लिए निवास-आधारित आवश्यकताएं और स्थानीय भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है, लेकिन और अधिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
- लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषदों (LADHC) को शक्तियों का हस्तांतरण अभी तक नहीं किया गया है।
- भूमि स्वामित्व और बड़े पैमाने पर ऊर्जा परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं।
प्रतिनिधित्व और स्वायत्तता की मांग
- यह विरोध प्रदर्शन बेहतर प्रतिनिधित्व और स्वायत्तता के लिए राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग है।
- लद्दाख में मुस्लिम और बौद्ध सहित सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक समूह इन मांगों का समर्थन करते हैं।
संवाद का महत्व
- केंद्र सरकार से आग्रह है कि वह प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करके उचित समाधान निकाले।
- सोनम वांगचुक जैसे अतिवादी दृष्टिकोणों पर वार्ता प्रक्रिया को पटरी से उतारे बिना सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
लद्दाख का सामरिक महत्व
- लद्दाख भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सीमा है, जो पाकिस्तान और चीन की सीमा से लगा हुआ है।
- इस क्षेत्र के लोगों ने रक्षा और खुफिया मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रचनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता
- राजनीतिक कर्ता-धर्ता और समूह विरोध प्रदर्शनों की भावनाओं से जुड़कर लोकतांत्रिक संवाद का प्रदर्शन कर रहे हैं।
- प्रदर्शनकारियों को "भारत विरोधी" कहना प्रतिकूल परिणाम देने वाला है, और नई दिल्ली तथा लेह दोनों को सहयोग करना चाहिए।
- स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोकने के लिए रचनात्मक सहभागिता आवश्यक है।