डिजिटल गिरफ्तारी घोटालों पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
डिजिटल गिरफ्तारी घोटालों के बढ़ते मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सक्रिय रुख अपनाते हुए केंद्र और CBI से जवाब मांगा है। इन घोटालों में साइबर अपराधी कानून प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण करके लोगों से जबरन वसूली करते हैं।
मामले का विवरण
- एक वरिष्ठ नागरिक दम्पति द्वारा धोखाधड़ी की घटना की रिपोर्ट के बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला शुरू किया गया, जिसमें उन्हें ₹1.5 करोड़ का नुकसान हुआ।
- साइबर अपराधियों ने CBI, खुफिया ब्यूरो और न्यायिक अधिकारियों का रूप धारण कर लिया।
- धोखाधड़ी करने वालों ने गिरफ्तारी का डर दिखाकर पीड़ितों को मजबूर करने के लिए कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के जाली अदालती आदेशों का इस्तेमाल किया।
- ये घोटाले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म और टेलीफोन के माध्यम से अंजाम दिए गए।
न्यायिक टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उच्चतम न्यायालय के जाली आदेशों के इस्तेमाल पर आश्चर्य व्यक्त किया और सहायता के लिए अटॉर्नी जनरल को शामिल करने का लक्ष्य रखा।
अपराध की प्रकृति
- इस घोटाले में जाली हस्ताक्षरों और मोहरों के साथ PMLA के तहत फ्रीज आदेश सहित न्यायिक आदेशों को गढ़ना शामिल था।
- पीठ ने स्पष्ट किया कि ये कृत्य गंभीर आपराधिक अपराध हैं, न कि केवल धोखाधड़ी या साइबर अपराध के सामान्य मामले।
व्यापक प्रभाव
अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाएं कोई अकेली घटना नहीं हैं, बल्कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं।