भारत में दवा विज्ञापन विनियमन की पृष्ठभूमि
1927 से ही भारत में दवा विज्ञापनों का विनियमन एक महत्वपूर्ण जन स्वास्थ्य चिंता का विषय रहा है। 1954 में लागू औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम (DMRA) 54 चिकित्सीय स्थितियों के लिए दवाओं के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है, चाहे उनकी प्रभावशीलता कुछ भी हो।
बड़े तकनीकी प्लेटफार्मों का प्रभाव
प्रौद्योगिकी में प्रगति और बिग टेक प्लेटफार्मों के उदय के साथ, पारंपरिक विज्ञापन के रास्ते डिजिटल प्रारूपों में स्थानांतरित हो गए हैं, जो विशेष रूप से प्रिंट पत्रकारिता और वैश्विक विज्ञापन विनियमन को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि ये प्लेटफॉर्म मुख्य रूप से अमेरिका में स्थित हैं।
अनुपालन संबंधी मुद्दे
- भारत में बड़े टेक प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक उत्पादों के लिए अक्सर DMRA की अनदेखी करते हुए भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करते हैं।
- अमेरिका में अस्वीकृत चिकित्सीय दावों को रोकने के लिए सख्त नियमों के बावजूद, ऐसा अनुपालन उनके भारतीय परिचालन में नहीं दिखता है।
गैर-अनुपालन के कारण
- ऐतिहासिक अवमानना: अमेरिकी निगमों का भारतीय कानूनों की उपेक्षा करने का इतिहास रहा है, जो संभवतः प्रणालीगत नस्लवाद में निहित है तथा अमेरिकी जीवन की तुलना में भारतीय जीवन को कम महत्व देते हैं।
- गंभीर दंड का अभाव: बिग टेक कंपनियां पहले भी PNDT अधिनियम के उल्लंघन के लिए महत्वपूर्ण दंड से बचती रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप दंड से मुक्ति की धारणा बनी है।
- कानूनी प्रतिरक्षा: अमेरिकी कानूनी ढांचे और कॉर्पोरेट संरचनाएं भारत में बिग टेक को अभियोजन से बचाती हैं।
उल्लंघनों से निपटने के लिए प्रस्तावित समाधान
DMRA के बिग टेक उल्लंघनों की समस्या का समाधान करना भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में स्व-चिकित्सा और राष्ट्रवादी भावनाओं की प्रवृत्ति है।
आगे की राह
- इन प्लेटफार्मों के प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करना।
- टिकटॉक के साथ अमेरिकी नियामक रणनीतियों के समान, बिग टेक को भारतीय संप्रभुता के तहत काम करने के लिए मजबूर करने वाले सुधारों को लागू करना।
- यह अधिदेश दिया जाना चाहिए कि भारत में विषय-वस्तु नीतियों के लिए जिम्मेदार प्रबंधकीय कार्मिक भारतीय नागरिक हों तथा भारतीय न्यायालयों के प्रति जवाबदेह हों।
- यदि भारतीय स्वास्थ्य कानूनों का अनुपालन नहीं किया जाता है तो मध्यस्थ प्रतिरक्षा को रद्द करने पर विचार करें।
लेखक: दिनेश एस. ठाकुर और प्रशांत रेड्डी टी. 'द ट्रुथ पिल: द मिथ ऑफ ड्रग रेगुलेशन इन इंडिया' के लेखक हैं।