भारत में यूरिया की खपत और चुनौतियाँ
वर्तमान उपभोग रुझान
चालू वित्त वर्ष में भारत की यूरिया खपत 4 करोड़ टन तक पहुँचने का अनुमान है, जो अतिरिक्त मानसून और एक दशक से भी ज़्यादा समय से अपरिवर्तित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से बढ़ी हुई माँग के कारण है। 2024-25 में यूरिया की बिक्री 3.88 करोड़ टन के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गई, जिसमें इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में 2.1% की वृद्धि हुई।
ऐतिहासिक उपभोग पैटर्न
- 1990-91 और 2010-11 के बीच यूरिया की खपत लगभग 14 मिलियन टन से दोगुनी होकर 28.1 मिलियन टन हो गयी।
- वर्ष 2013-14 में यह बढ़कर 30.6 मिलियन टन हो गया, जो वर्ष 2017-18 में घटकर 29.9 मिलियन टन रह गया।
- 2015 में शुरू की गई नीम तेल कोटिंग से पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता में वृद्धि होने और अवैध उपयोग को रोकने की उम्मीद थी, लेकिन खपत में वृद्धि जारी रही, जो 2020-21 तक 35 मिलियन टन को पार कर गई।
भविष्य का दृष्टिकोण और सिफारिशें
यूरिया की किफ़ायती कीमत, उपयोग में आसानी और प्रभावशीलता के कारण इसकी माँग बढ़ने की उम्मीद है। खपत को लगभग 45 मिलियन टन तक सीमित रखने के संभावित उपायों में MRP को तर्कसंगत बनाना, राशनिंग और रासायनिक अवरोधक शामिल हैं। वर्तमान घरेलू उत्पादन क्षमता 30-31 मिलियन टन है, जिससे माँग पूरी करने के लिए आयात करना आवश्यक हो जाता है।
भारत का मौजूदा LNG बुनियादी ढांचा कुछ क्षेत्रों में यूरिया उत्पादन के लिए गैस आयात का समर्थन करता है, जिससे आपूर्ति प्रबंधन के लिए आर्थिक और तार्किक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं।