POCSO अधिनियम का दुरुपयोग और जागरूकता की आवश्यकता
सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक कलह और सहमति से बनाए गए किशोर संबंधों से जुड़े मामलों में POCSO अधिनियम के दुरुपयोग पर विचार किया तथा इसके कानूनी निहितार्थों के बारे में लड़कों और पुरुषों के बीच जागरूकता बढ़ाने के महत्व पर बल दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने विशेष रूप से वैवाहिक और किशोरावस्था में सहमति से बनाए गए संबंधों के मामलों में पोक्सो अधिनियम के दुरुपयोग पर गौर किया।
- अधिनियम के कानूनी प्रावधानों के संबंध में लड़कों और पुरुषों के बीच जागरूकता फैलाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
वर्तमान कानूनी कार्यवाही
- मामले की सुनवाई 2 दिसंबर तक स्थगित कर दी गई, क्योंकि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है।
- इससे पहले केंद्र, शिक्षा और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा CBFC को नोटिस जारी किए गए थे।
वरिष्ठ वकील आबाद हर्षद पोंडा की याचिका
- उन्होंने बलात्कार कानूनों और निर्भया मामले के बाद हुए बदलावों के बारे में जनता को सूचित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शैक्षिक पाठ्यक्रमों में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों से संबंधित दंडात्मक प्रावधानों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया।
जागरूकता के लिए प्रस्तावित उपाय
- लैंगिक समानता, महिला अधिकारों और सम्मान के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा में नैतिक प्रशिक्षण का एकीकरण।
- स्कूल स्तर से ही लड़कों की मानसिकता बदलने के प्रयास शुरू किए जाएंगे।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, CBFC और अन्य प्राधिकारियों को बलात्कार के परिणामों को उजागर करने और पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों पर जनता को शिक्षित करने के निर्देश।