भारत में गैर-संचारी रोग (NCD) और मधुमेह
भारत गैर-संचारी रोगों (NCD) के एक बड़े बोझ से जूझ रहा है, जहाँ 10 करोड़ से ज़्यादा लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं। ज़्यादातर मौजूदा निदान उपकरण मधुमेह का पता तभी लगा पाते हैं जब काफ़ी नुकसान हो चुका होता है।
मेटाबोलोमिक प्रोफाइलिंग पर नया अध्ययन
IIT बॉम्बे, उस्मानिया मेडिकल कॉलेज और क्लैरिटी बायो सिस्टम्स के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन, जो जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है, से पता चलता है कि रक्त में मेटाबोलाइट्स मधुमेह और संबंधित जटिलताओं, विशेष रूप से गुर्दे की बीमारी के शुरुआती संकेतक के रूप में काम कर सकते हैं।
- मेटाबोलाइट्स: चयापचय प्रक्रियाओं के दौरान उत्पादित शर्करा, अमीनो एसिड और लिपिड जैसे छोटे अणु।
- मेटाबोलोमिक प्रोफाइलिंग: शरीर के रसायन विज्ञान में सूक्ष्म परिवर्तनों का पता लगाने की अनुमति देता है, जो संभवतः रोग के लक्षणों से पहले हो सकते हैं।
- तकनीक: रक्त के नमूनों से मेटाबोलाइट्स का विश्लेषण करने के लिए तरल क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग किया जाता है।
अध्ययन पद्धति और निष्कर्ष
अध्ययन में 52 प्रतिभागियों से सूखे रक्त के धब्बे एकत्र किए गए, जिनमें स्वस्थ व्यक्ति, मधुमेह रोगी और मधुमेह किडनी रोग (DKD) से पीड़ित लोग शामिल थे।
- स्वस्थ और मधुमेह व्यक्तियों के बीच महत्वपूर्ण रूप से भिन्न 26 मेटाबोलाइट्स की पहचान की गई।
- 7 मेटाबोलाइट्स का पता लगाया गया, जो किडनी की जटिलताओं वाले व्यक्तियों में प्रगतिशील वृद्धि दर्शाते हैं।
- मधुमेह रोगियों में उनके चयापचय प्रोफाइल के आधार पर दो अलग-अलग उपसमूह पाए गए।
स्वास्थ्य सेवा पर प्रभाव
- शीघ्र पहचान: मेटाबोलोमिक प्रोफाइलिंग से लक्षणों के प्रकट होने से पहले ही रोग के जोखिम की पहचान की जा सकती है, जिससे शीघ्र हस्तक्षेप में सुविधा होगी।
- व्यक्तिगत देखभाल: अनुकूलित हस्तक्षेपों के लिए चयापचय प्रोफाइल के आधार पर रोगियों को समूहीकृत करने में सक्षम बनाता है।
- चुनौतियाँ: छोटे नमूने का आकार, बड़े अध्ययनों की आवश्यकता, मानकीकरण प्रोटोकॉल और प्रौद्योगिकी की पहुंच।
भविष्य की संभावनाओं
शोधकर्ताओं का लक्ष्य निष्कर्षों को सत्यापित करने और विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों में उनकी प्रयोज्यता का पता लगाने के लिए बड़े समूह अध्ययन करना है। स्वास्थ्य सेवा में मेटाबोलोमिक्स के सफल एकीकरण से प्रतिक्रियाशील उपचार से सक्रिय रोकथाम पर ध्यान केंद्रित हो सकता है।