इलुलिसैट आइसफजॉर्ड और ग्लेशियर रिट्रीट
लगभग 60 किलोमीटर लंबा इलुलिसैट आइसफ़िर्ड , ग्रीनलैंड आइस शीट के एक भाग, सेर्मेक कुजालेक ग्लेशियर (जिसे जैकब्सहावन ग्लेशियर भी कहा जाता है) से टूटने वाले हिमखंडों का एक प्रमुख निकास द्वार है। 1850 से, यह ग्लेशियर लगभग 40 किलोमीटर पीछे हट चुका है, और 2002 से 22 किलोमीटर पीछे हटने की घटना हुई है, जो एक त्वरित प्रक्रिया का संकेत है।
क्रायोस्फीयर की स्थिति 2025 रिपोर्ट
- इस रिपोर्ट का समन्वयन अंतर्राष्ट्रीय क्रायोस्फीयर जलवायु पहल (ICCI) द्वारा किया गया है तथा इसकी समीक्षा 50 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।
- मुख्य निष्कर्ष: वैश्विक स्तर पर बर्फ का क्षरण तेजी से बढ़ रहा है, जिससे समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है और वैश्विक स्तर पर जोखिम बढ़ रहा है।
- तापमान सीमा: ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के लिए स्थिरता सीमा लगभग 1°C है; कई पर्वतीय ग्लेशियर इससे भी कम तापमान पर असुरक्षित हैं।
- तात्कालिकता: वर्तमान तापमान ग्लेशियर और बर्फ की चादर की स्थिरता के लिए सुरक्षित स्तर से अधिक है। 2100 तक 1.5°C का लक्ष्य रखना और उसके बाद 1°C की ओर बढ़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जलवायु कार्रवाई और शमन
- वर्तमान राष्ट्रीय प्रतिज्ञाएं 2°C से अधिक तापमान वृद्धि का अनुमान लगा रही हैं, जिससे बर्फ के जमाव तथा समुद्र स्तर में नियंत्रण योग्य वृद्धि का खतरा है।
- उच्च महत्वाकांक्षा मार्ग: तापमान कम करने और बर्फ के क्षरण को धीमा करने के लिए आवश्यक बताया गया।
- उपलब्ध साधन: मौजूदा उपायों से क्षति को कम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
महासागर और पर्माफ्रॉस्ट प्रभाव
- महासागरीय धाराएँ: पिघलती बर्फ और गर्म होते समुद्र प्रमुख महासागरीय धाराओं को धीमा कर देते हैं, जिससे यूरोप की जलवायु, क्षेत्रीय समुद्र स्तर और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं।
- अम्लीकरण: ध्रुवीय महासागरों में तेजी से अम्लीकरण हो रहा है, जिससे समुद्री जीवन को खतरा हो रहा है।
- कार्बन उत्सर्जन: पर्माफ्रॉस्ट अब जितना अवशोषित करता है, उससे अधिक ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित करता है, जिससे शमन लागत बढ़ जाती है।
भारत पर प्रभाव
- समुद्र-स्तर में वृद्धि: मुंबई, कोच्चि और कोलकाता जैसे शहरों के लिए दीर्घकालिक चुनौतियां उत्पन्न करती है।
- हिमालयी बर्फ में कमी: गंगा-ब्रह्मपुत्र-सिंधु बेसिनों में बाढ़ और जल तनाव जैसी जलवैज्ञानिक चरम स्थितियों का कारण बनती है।
तापमान पथ और निहितार्थ
- 1.5°C से कम: पश्चिमी हिमालय 2020 के ग्लेशियर द्रव्यमान का लगभग 85% हिस्सा बरकरार रख सकता है।
- 3°C से कम: केवल ~30% ग्लेशियर द्रव्यमान प्रतिधारण की उम्मीद है।
वैश्विक और कूटनीतिक प्रयास
- ब्लैक कार्बन: कालिख उत्सर्जन को कम करने से ग्लेशियर पिघलने की गति धीमी हो सकती है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त होंगे।
- कूटनीतिक पहल: चिली और आइसलैंड की सह-अध्यक्षता वाले समूह 'एम्बिशन ऑन मेल्टिंग आइस' ने तत्काल निवारक कार्रवाई की वकालत की है।
वैज्ञानिकों ने बर्फ के क्षरण को वैश्विक सुरक्षा जोखिम के रूप में देखने पर जोर दिया है, तथा COP30 में नीति निर्माताओं से उत्सर्जन में तीव्र कटौती लागू करने का आग्रह किया है।