तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट का संकेत
सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि वह तलाक-ए-हसन की प्रथा को समाप्त कर सकता है, जो एक मुस्लिम पुरुष को तीन महीने तक हर महीने एक बार 'तलाक' कहकर अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति देने वाली प्रक्रिया है।
विचार-विमर्श और अवलोकन
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ इस बात पर विचार कर रही है कि इस मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए या नहीं।
- न्यायालय ने संबंधित पक्षों से विचार के लिए व्यापक प्रश्नों की रूपरेखा वाले नोट प्रस्तुत करने को कहा है।
- न्यायमूर्ति कांत ने महिलाओं की गरिमा और सामाजिक मानकों को प्रभावित करने वाली प्रथाओं में न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।
इस प्रथा पर चिंताएँ
- न्यायमूर्ति कांत ने सभ्य समाज में ऐसी प्रथाओं के जारी रहने पर सवाल उठाया तथा संभावित भेदभाव पर प्रकाश डाला।
- इस प्रथा की महिलाओं की गरिमा और सामाजिक मानदंडों पर पड़ने वाले प्रभाव के लिए आलोचना की जाती है।
जनहित याचिका
- यह मुद्दा 2022 में पत्रकार बेनज़ीर हीना द्वारा दायर एक जनहित याचिका से उठा।
- जनहित याचिका में दावा किया गया है कि यह प्रथा असंवैधानिक है तथा अपनी अतार्किकता और मनमानी के कारण संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है।
- याचिकाकर्ता ने तलाक के लिए लिंग और धर्म-तटस्थ प्रक्रियाओं और आधारों की मांग की है।
- याचिकाकर्ता के पति ने कथित तौर पर दहेज संबंधी उत्पीड़न के बाद तलाक-ए-हसन नोटिस के माध्यम से उसे तलाक दे दिया।