राष्ट्रपति के संदर्भ पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 16वें राष्ट्रपति संदर्भ पर विचार करते हुए विधायी प्रक्रिया में राज्यपालों और राष्ट्रपति की भूमिकाओं पर महत्वपूर्ण राय दी।
फैसले के मुख्य पहलू
- न्यायिक सीमाएं: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका राज्य विधेयकों के निपटान के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर सख्त समय-सीमा नहीं लगा सकती।
- शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत: इस बात पर प्रकाश डाला गया कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के कार्यों को संभालने का कोई भी प्रयास संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
- निष्क्रियता पर रोक: न्यायालय ने कहा कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों को मंजूरी देने में अनुचित देरी से बचना चाहिए, क्योंकि इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और कल्याणकारी कानूनों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है।
न्यायिक पीठ
- यह राय पांच न्यायाधीशों की पीठ ने दी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर शामिल थे।
- यह निर्णय न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन को रेखांकित करता है, तथा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को सुदृढ़ करता है।