असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025
असम विधान सभा ने 2025 में असम बहुविवाह निषेध विधेयक पारित किया, जिससे असम उत्तराखंड के बाद बहुविवाह के खिलाफ कानून बनाने वाला दूसरा राज्य बन गया, जिसमें दंडात्मक उपाय के रूप में कारावास का प्रस्ताव किया गया।
संदर्भ और कानूनी ढांचा
- यद्यपि भारतीय दंड संहिता, जिसे भारतीय न्याय संहिता (BNS) के नाम से भी जाना जाता है, द्विविवाह को अपराध मानती है, लेकिन इसका अनुप्रयोग धार्मिक पहचान के आधार पर भिन्न होता है।
- समान नागरिक संहिता (UCC) के अभाव का अर्थ है कि विवाह, तलाक और उत्तराधिकार व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होंगे।
- हिंदू विवाह अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, तथा भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम जैसे व्यक्तिगत कानून मुसलमानों को छोड़कर अधिकांश आबादी के लिए द्विविवाह को प्रतिबंधित करते हैं।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ बहुविवाह की अनुमति देता है, तथा मुस्लिम पुरुषों को BNS के तहत दंड से छूट देता है।
असम और उत्तराखंड का विधान
- दोनों राज्यों का लक्ष्य अपने अधिकार क्षेत्र में मुस्लिम पर्सनल लॉ की छूट को खत्म करना है।
- असम विधेयक में बहुविवाह को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है, जिसमें धोखाधड़ी होने पर 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
- नागरिक अक्षमताओं में असम में सार्वजनिक रोजगार और चुनाव उम्मीदवारी के लिए अयोग्यता शामिल है।
- जनजातीय समुदायों के लिए अपवाद मौजूद हैं, जो अपनी पारंपरिक प्रथाओं को जारी रख सकते हैं।
गोवा अपवाद
- गोवा पुर्तगाली नागरिक संहिता के तहत कार्य करता है, जिसमें एक विवाह को अनिवार्य बनाया गया है, जबकि हिंदुओं के लिए सशर्त बहुविवाह की अनुमति है, हालांकि इसका प्रयोग बहुत कम होता है।
न्यायिक और भविष्य के परिप्रेक्ष्य
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में फैसला दिया था कि बहुविवाह इस्लाम की अनिवार्य प्रथा नहीं है, जिससे राज्य को ऐसी प्रथाओं में सुधार करने की अनुमति मिल गई।
- गुजरात बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने वाला अगला राज्य हो सकता है, क्योंकि उसने समान नागरिक संहिता (UCC) के मसौदे के लिए एक समिति गठित की है।