गुजरात में कपास की खेती के संकट का अवलोकन
भारत के गुजरात में कपास किसानों के सामने आई हालिया आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण गंभीर संकट पैदा हो गया है, जिसके कारण किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएँ सामने आई हैं। यह सारांश इस संकट के लिए ज़िम्मेदार कारकों, सरकारी नीतियों के प्रभाव और विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करता है।
आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ
- मूल्य में गिरावट: किसानों को कपास की कम कीमत का सामना करना पड़ा, जो लगभग 1,200-1,300 रुपये प्रति मन (20 किलोग्राम) थी, जो पिछले वर्षों की तुलना में बड़ी गिरावट थी।
- मौसम संबंधी समस्याएं: अक्टूबर में गैर-मौसमी और अत्यधिक बारिश से फसलों को नुकसान पहुंचा, जिससे किसानों की वित्तीय समस्याएं और बढ़ गईं।
सरकार की प्रतिक्रिया
- राहत पैकेज: मुख्यमंत्री ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये के राहत और सहायता पैकेज की घोषणा की, जिसमें समर्थन मूल्य पर विभिन्न फसलों की खरीद की योजना शामिल है।
- आयात शुल्क में छूट: केंद्र सरकार ने कच्चे कपास के आयात पर सीमा शुल्क में छूट दे दी, जिसका उद्देश्य कपड़ा लागत को स्थिर करना था, लेकिन इससे घरेलू कपास की कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
आयात नीतियों का प्रभाव
- आयात में वृद्धि: भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में अपने कपास आयात को लगभग दोगुना कर दिया, जिससे घरेलू कीमतों में और गिरावट आई।
- उद्योग बनाम किसान: जहां कपड़ा उद्योग को सस्ते आयातित कपास से लाभ होता है, वहीं भारतीय किसानों को उनकी उपज के लिए कम कीमत मिलती है।
कृषि और बाजार गतिशीलता
- उत्पादन और क्षेत्रफल: 2024-25 के लिए कपास का अनंतिम क्षेत्रफल 114.47 लाख हेक्टेयर है, जो 2023-24 से कम है, तथा पैदावार स्थिर रहने की उम्मीद है।
- बाजार तक पहुंच संबंधी समस्याएं: किसानों को स्थानीय बाजार की अनुपस्थिति जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उन्हें दूरदराज के जिलों में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
किसान विरोध प्रदर्शन
- आत्महत्याएं और विरोध प्रदर्शन: हाल के महीनों में छह किसानों, मुख्य रूप से कपास उत्पादक, ने आत्महत्या कर ली है, जिसके कारण सरकार की नीतियों और पर्याप्त मूल्य समर्थन की कमी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
कपास उत्पादन में चुनौतियाँ
- इनपुट लागत: बीज और कीटनाशकों की बढ़ती लागत तथा कपास की स्थिर कीमतों ने किसानों को कपास की खेती करने से हतोत्साहित किया है।
- वैकल्पिक फसलों की ओर रुख: कई किसान लागत कम करने के लिए मूंगफली, दालों या काला कपास जैसी पारंपरिक कपास की किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं।
उद्योग परिप्रेक्ष्य
- गुणवत्ता और उपज संबंधी समस्याएँ: निम्न गुणवत्ता वाले बीज और कम उपज प्रमुख चुनौतियाँ हैं। किसान, उत्पादकता बढ़ाने के लिए नए बीज अनुमोदन की वकालत कर रहे हैं।
- जिनिंग मिलों पर प्रभाव: शुल्क मुक्त आयात नीति से कताई मिलों को लाभ होता है, लेकिन जिनिंग मिलों के लिए खतरा पैदा होता है, जिसके कारण कई मिलों को बंद करना पड़ता है।
निष्कर्ष
गुजरात में कपास की खेती का संकट बहुआयामी है, जिसमें आर्थिक, पर्यावरणीय और व्यवस्थागत चुनौतियाँ शामिल हैं। हालाँकि सरकारी उपायों का उद्देश्य उद्योग को स्थिर करना है, लेकिन वे अक्सर किसानों की समस्या के मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहते हैं। स्थायी समाधान के लिए, व्यापक नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है जो उद्योग के विकास और किसान कल्याण के बीच संतुलन स्थापित करें।