पृष्ठभूमि और प्रस्तावना
भारत निर्वाचन आयोग (EC) ने मतदाता सूचियों का विशेष-गहन पुनरीक्षण (SIR) किया है, जो मृत, डुप्लिकेट या स्थानांतरित मतदाताओं को हटाने के लिए एक नियमित प्रशासनिक उपाय था। हालाँकि, इस प्रक्रिया की पारदर्शिता की कमी, मनमाने निर्णय और नागरिकों के मताधिकार की अनदेखी को लेकर कड़ी आलोचना हुई और इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव गरीबों, प्रवासियों और दिहाड़ी मज़दूर जैसे हाशिए के समूहों पर पड़ा।
SIR प्रक्रिया से संबंधित मुद्दे
- समय और निष्पादन:
- SIR को महत्वपूर्ण चुनावों से ठीक पहले देशव्यापी स्तर पर शुरू किया गया था, जिससे सावधानीपूर्वक योजना और सत्यापन की आवश्यकता वाली प्रक्रिया एक जल्दबाज़ी वाली समय-सीमा में सिमट गई।
- कमजोर समूहों का बहिष्कार:
- अतार्किक नौकरशाही मांगों के कारण हाशिए पर रहने वाले समूहों को अपनी पहचान और निवास साबित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- बिहार में संवैधानिक चिंताएँ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार मामले में हस्तक्षेप करते हुए इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवैधानिक अनुपालन की कमी को उजागर किया।
- न्यायालय द्वारा पाँच सुधारात्मक उपाय लागू किए गए, जिनमें हटाए गए मतदाताओं की सूची का प्रकाशन और आधार को वैध पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करना शामिल था।
सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप
न्यायालय ने चुनाव आयोग की इस त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया पर अंकुश लगाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख निर्देश दिए:
- हटाए गए मतदाता सूची का प्रकाशन: न्यायालय ने पारदर्शिता की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए हटाए गए मतदाताओं की सूची जारी करने का निर्देश दिया।
- आधार की मान्यता: EC की चूक को सुधारते हुए, आधार को वैध दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया गया।
- कानूनी सेवाओं की भागीदारी: गलत तरीके से हटाए गए मतदाताओं को दावे और आपत्तियाँ दर्ज करने में सहायता के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता को शामिल किया गया।
- न्यायिक पर्यवेक्षण: चुनाव आयोग की अविश्वासपूर्ण प्रक्रिया के कारण लगभग साप्ताहिक सुनवाई और अनुपालन रिपोर्ट की आवश्यकता हुई।
- वास्तविक समय प्रकटीकरण: EC को प्रतिदिन बूथ-वार हटाए गए और जोड़े गए मतदाताओं की संख्या प्रकाशित करने का आदेश दिया गया।
परिचालन चुनौतियाँ
- फील्ड अधिकारियों का बोझ: अधिकारियों को अवास्तविक समय-सीमाओं और असंगत सत्यापन प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप बूथ स्तर के अधिकारियों (BLOs) में आत्महत्या सहित दुखद परिणाम सामने आए।
- राजनीतिक दल का विरोध: लगभग हर राजनीतिक दल ने चिंताएँ जताई हैं, हालांकि कुछ दलों ने इन आलोचनाओं को हाल ही में स्वीकार करना शुरू किया है।
महत्वपूर्ण विमर्श और सुधार की मांग
- तकनीकी पारदर्शिता की आवश्यकता:
- निर्वाचन आयोग को सुगम्यता और जवाबदेही में सुधार के लिए मतदाता सूचियों को मशीन द्वारा पठनीय और खोज योग्य बनाना चाहिए।
- पूर्व उदाहरणों पर प्रश्न उठाना:
- निर्वाचन आयोग द्वारा कमलनाथ मामले में लिए गए फैसले जैसे उदाहरणों पर भरोसा करने की आलोचना मतदाता अधिकारों से समझौता करने के लिए की जा रही है।
- सुधारों का आह्वान:
- चुनाव आयोग को SIR प्रक्रिया को रोकना चाहिए और इसमें सुधार करना चाहिए, तथा सांख्यिकीय स्वच्छता के बजाय मतदाता संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
निष्कर्ष
SIR प्रक्रिया में गंभीर प्रक्रियागत खामियाँ रही हैं और इसने चुनाव आयोग की लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े किए हैं। भविष्य की दिशा पारदर्शिता, समावेशिता, और वास्तविक मतदाता सूची की अखंडता पर केंद्रित होनी चाहिए।